मैं कभी नही कहती मुझे तुम्हारी कितनी याद आती है। तुमसे फोन पर बात करते समय मैं कभी तुमको नमस्ते नही बोलती, वरना लगता है तुम कहीं मुझसेबहुत दूर हो। माँ तुम्हारे बिना सबकुछ होकर भी कुछ नहीं। पीछे मुड़ कर देखो तो लगता है काश वक़्त लौट आये जो तुम्हारे साथ बिता लूँ। माँ इतनी बड़ी क्यों हो गयी मैं जो तुमसे दूर जाना पड़ा। अपने पास रख लेती छुपा कर मुझको। यहां सब अच्छे है पर तुम नहीं हो माँ। जब बीमार होती हूँ तो तुम्हारा स्पर्श नहीं है माँ। सर दर्द में तुम्हारी चम्पी नहीं है माँ। तुम्हारे हाथ की दाल का स्वाद नहीं है माँ। तुम्हारा दुलार नही है माँ।
बचपन में याद है मुझे लाइट जाने पर तुम दोनों हाथों में मोमबत्ती लिए बैठी रहती थी ताकि हम दोनों बहनें अपना होमवर्क करले, अपनी नींद की परवाह किये बिना। अब जिम्मेदारियों में पढ़ाई का वक़्त नहीं मिलता। तुम्हारा जज़्बा हमें आगे बढ़ाता रहा। आज भी कहीं मुश्किल होती है तो तुम वैसे ही सहारा देती हो, पर घर पहुच कर जब तुम्हारी सूरत नहीं दिखती तो दिल टूट जाता है, हौसला तहस नहस हो जाता है। पर तुम्हारी मुस्कान बड़ी हिम्मत देती है। माँ जीवन के हर सफर में तुमने रास्ता दिखाया पर आज जो मैं ज्यादा पढ़ लिख गयी हूँ तो तुमको नकार देती हूँ कई जगह। मुझे इन सब बातों के लिए माफ़ करना जैसे हमेशा करती हो। नासमझी है मेरी। अब मालूम होती है तुम्हारी वकत।
लोग कहते हैं माँ बाप सिर्फ जन्म के साथी है कर्म के नहीं, व्यवहारिक बनो। कैसे बनूँ माँ तुमसे मेरा मोह तो तबसे है जब मैं इस दुनिया में थी भी नहीं। आज भी मेरे बिना कहे तुम समझ जाती हो कि मैं कहीं दर्द में हूँ, मेरी आवाज की बनावट भी पहचानती हो। तुमसे कैसी औपचारिकता।
उन क्षणों की माफ़ी तुमसे कैसे मांग जिनमे मैंने तुम्हे दुःख पहुचाया। आज अनायास ही मैं यह सब क्यों कह रही हूँ यह तुम सोचती होगी। मालूम नहीं माँ आज तुम्हारी बहुत याद आ रही है। तुम्हारी थपकी, तुम्हारा मुझे सीने से लिपटा कर सो जाना और जाने क्या क्या। इसमें भी मेरा स्वार्थ हैं शायद, आज कुछ बीमार सी हूँ न इसलिए। पर तुम परेशान मत हो मैं बिलकुल ठीक हूँ। जीवन के संघर्षों से अकेले जूझना सीख रहीं हूँ। जल्दी सीख जाउंगी तुमने ऐसे संस्कार दिए हैं मुझे।
तुम हमेशा मुस्कुराती रहना बस। तुम्हारी मुस्कान ताकत देती है मुझे।
तुम्हारी बेटी।