ये महिला दिवस मनाने की ज़रूरत क्यों पड़ती है? पुरुष दिवस को भी इतने उल्लास से क्यों नहीं मनाते? होता भी है ऐसा कोई दिवस? इस बात पर हम तुरन्त गूगल कर लेंगे।
क्या अधिकारों को पाने का अधिकार सिर्फ महिलाओं का है? या कभी किसी पुरुष के साथ अन्याय नहीं हुआ?
फेमिनिस्ट लोग तुरन्त मुझे उठवा सकते है। मेरे नाम का फतवा जारी करदें चाहे तो लेकिन मेरे सवाल हमेशा रहेंगे। अगर अपने आसपास नज़र घुमा कर देखें तो पाएंगे कि औरतों की आज़ादी का नारा देने वालीं ये महान औरतें आपको रोज़ ही इंस्टाग्राम पर क्लब पार्टीज की फ़ोटो पोस्ट करती दिखेंगी। पर जिन्हें सशक्तिकरण चाहिए उन्हें तो पता ही नहीं कि ये होता क्या है तो ऑफ कोर्स इसकी मांग कैसे करेंगी।
इसके साथ ही एक और बड़ा मुद्दा है। आज यूँही क्लास में लेक्चर लेते समय जब महिला दिवस की बात हुई तो यक़ीन मानिये बड़ा कड़वा सच सामने आया कि स्नातक में पढ़ने वाली छात्राओं को शहर में पार्टीज कहाँ कहाँ है ये तो मालूम है लेकिन संविधान में अधिकार क्या मिले हैं इनका कुछ पता नही।
इस घटना पर चर्चा करते समय जो दिमाग मे आया वो कुछ ऐसा था कि वजह ये हो सकती है कि हम अपनी लड़कियों को बाहर की दुनिया मे पर फैलाने तो दे रहें हैं लेकिन उन्हें उनके वैधानिक अधिकारों से रूबरू नहीं करा रहे जो बेहद जरुरी है। आधी जानकारी लेकर हमारी लड़कियां सशक्त कैसे होंगी और जब वो खुद ताकत नहीं पाएंगी तो बाकियों के लिए प्रेरणा स्त्रोत कैसे बनेंगी।
यहाँ फिर से कई सवाल उठते हैं। बनसपत की गलत के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए ये ज़रूरी है कि उन्हें मालूम हो कि जो हो रहा है वो गलत है। और साथ ही जितनों ने गलत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई क्या वो वाक़ई सही थे?
पुरुष हो या स्त्री, गलत के खिलाफ मोर्चा सभी को खोलना चाहिए। अधिकार सभी को बराबरी के मिलने चाहिए। महिला दिवस के साथ पुरुष दिवस भी बहुत धूम धाम से मनाना चाहिए।
और मेरी मानिये तो एक इंसान दिवस मनाईये। ये सब उसी में कवर हो जाएगा। सबको अच्छा लगेगा।
और एक बात स्पेशली महिलाओं से। आप खूबसूरत हैं औऱ ईश्वर की सबसे नायब रचना हैं। हर पल अपने सौंदर्य और नारीत्व को एन्जॉय कीजिये , खुश रहिये, अच्छा साहित्य पढिये, अपने आपको फिनांशली स्वतन्त्र बनाइये , स्वस्थ रहिये, मुस्कुराइए और खूब खुशियां बिखेरिये। मेरी बात मानिये आपको हर रोज़ महिला दिवस जैसा स्पेशल फील होगा।
बाक़ी आज जब रायता फैला ही है तो मेरी तरफ से सभी को बधाई।