|| चित्रकूट के घाट पर भई
संतन की भीर
तुलसीदास चंदन घिसें तिलक
धरें रघुबीर ||
कहतें हैं श्री राम
ने अपने चौदह वर्षों के वनवास में से साढ़े ग्यारह वर्षों तक चित्रकूट में निवास
किया था | चित्रकूट का भारतीय धर्म एवं दर्शन में एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान
है | सती अनुसूया जो सप्त ऋषि मंडल के ऋषि अत्रि की पत्नी हैं उन्होंने भी यहीं
ध्यान लगाया था | चित्रकूट शब्द दो शब्दों के मेल से बना है; चित्र जिसका संस्कृत
में अर्थ है अशोक और कूट जिसका अर्थ है शिखर या चोटी | इसका मतलब यह हुआ की इस
स्थान पर अशोक के वृक्ष बहुतायत में पाए जाते थे इसलिए इस स्थल का नाम चित्रकूट
पड़ा | तुलसीदास रचित श्री राम चरित मानस की रचना भी यहाँ से कुछ दूर राजापुर नाम
के स्थान पर हुई है जहाँ गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म और जीवन यापन हुआ था |
सौभग्य से पिछले सप्ताह हुई छुट्टियों में हमें सपरिवार चित्रकूट धाम जाने का अवसर प्राप्त हुआ | उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित यह जगह विन्ध्यपर्वत श्रेणी में आती है जिसका विस्तार उत्तर और मध्य प्रदेश में है | इसकी श्रृंखलाओं में कामदगिरी पर्वत , हनुमान धारा , जानकी कुण्ड, लक्ष्मण पहाड़ी आदि आते हैं | यूँ तो चित्रकूट पहुँचने का सीधा रेल मार्ग है जो 8 किलोमीटर दूरी पर स्थित कर्वी रेलवे स्टेशन पर ले जाता है किन्तु हम लोगो ने सड़क मार्ग से जाने का निश्चय किया और अपनी गाड़ी से कानपुर से होते हुए बाँदा के रस्ते हम सब चित्रकूट पहुंचे | यह हालाँकि अप्रैल है लेकिन समतल, पठारी और निचली पहाड़ियों के इलाकों में इन दिनों गर्मी की प्रचंडता प्रारंभ हो जाती है | पर जब घूमने का जूनून हो तो यह सब कठिनाईयां शब्द मात्र लगते हैं | चित्रकूट पहुँच कर हम लोगों ने कुछ विश्राम करने के बाद शाम को राम घाट जाने का प्लान बनाया |
आपको बता दे की राम घाट मन्दाकिनी नदी के तट पर बना हुआ वह घाट है जहाँ वनवास के समय पर प्रभु राम सीता माता और लक्ष्मण जी के साथ केवट की नाव से प्रयाग से आये थे | केवट ने उन्हें गंगा पर करने से पूर्व अपने समस्त पूर्वजों को प्रभु द्वारा मोक्ष दिला दिया था | यहाँ घाट पर पहुँच कर प्रभु राम ने शिवजी की पूजा की | आज वहां बहुत प्राचीन और विशाल मन्दिर है | हमने राम घाट पर नौका विहार किया | मन्दाकिनी नदी का जल मंद गति से बहता है | घाट पर जल की गहरायी कहीं १० , १५ और २० फुट तक है | गौधूली के समय यहाँ गंगा आरती का दृश्य बहुत ही मनोरम होता है | यहीं पर भगवन राम की वनवासी छवि का मंदिर है जिसकी रक्षा एक विशालकायी हनुमान जी की मूर्ती करति है |
शाम को नौका विहार
और आरती के बाद कामदगिरी पर्वत की परिक्रमा करने की योजना बनी | कामदगिरी पर्वत के
मुख्य देव हैं कामता नाथ | इनके दर्शन और पर्वत की परिक्रमा को सभी मनोकामनाओं का
पूरक माना जाता है | पर्वत के चरों ओर साढ़े पांच किलोमीटर के परिक्रमा मार्ग में कई
मंदिर बने हुए है | साढ़े ग्यारह वर्षो के लम्बे समय सह अनुज व् पत्नी संग श्री राम
के यहाँ निवास के कारण चित्रकूट धाम की भूमि को हर पग पर पावन माना गया है | मार्ग
के किनारे-किनारे राम मुहल्ला, मुखारबिंद, साक्षी गोपाल, भरत-मिलाप आदि कई देवालय बने
हुए हैं। इसकी दक्षिणी दिशा में एक छोटी
पहाड़ी पर लक्ष्मणजी का एक मंदिर भी है। कहा जाता है कि वनवास में लक्ष्मण जी यहीं
रहा करते थे। परिक्रमा मार्ग में ही भरत मिलाप मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि यहीं भरत भगवान श्री राम
से मिलने आए थे। यहीं पर जानकी कुण्ड भी स्थित
है जहाँ माता सीता स्नान किया करती थी | यह सब देकते देखते काफी समय बीत गया और
थकान के कारण हमने भोजन करके आराम करने का निश्चय किया |
अगले दिन की
हमारी शुरुआत हुई गुप्त गोदावरी से | राम घाट से कुछ सत्रह किलोमीटर की दूरी पर
स्थित गुप्त गोदावरी एक पर्वत श्रुंखला में बसी हुई दो गुफाएं हैं जहाँ माना जाता
है की श्री राम अपना दरबार लगाते थे | पहली गुफा ऊंची , चौड़ी और छोटी है जिसमे एक
और सीता कुण्ड है | यहाँ पर एक दन्त कथा मशहूर है की सीता जी के स्नान करने के
दौरान खटखटा चोर ने उनके वस्त्र चुरा लिए थे तो लक्ष्मण जी ने उसे तीर से ऊपर टांग
दिया था | आज भी उस स्थान पर एक तीर नुमा पत्थर लटका हुआ है |
गुफा में जाने का मार्ग बहुत ही संकरा है | अंदर
की ओर एक अज्ञात स्थान से जल का स्त्रोत है जिसका आरंभ और अंत किसी को ज्ञात नहीं
| इसे गुप्त रूप से गोदावरी का उद्गम मानते हैं | दूसरी गुफा में जाने से पूर्व एक
पंचमुखी शिवलिंग है | यह गुफा गहरी लम्बी और संकरी है जो हर समय पानी से भरी रहती
है | इसमें भी जल के स्त्रोत का आरंभ और अंत ज्ञात नहीं है | पानी यहाँ टखनों से
घुटनों तक की गहरान में है और पानी के अंदर पथरीली ज़मीन है | यहाँ साल भर सैकड़ो
लोगों का आवागमन होता है लेकिन पानी एकदम साफ और स्वच्छ है | गुफा इतनी सकरी है की
यहाँ एक बार में दो लोग भी नही जा सकते | इसके अंत में राम जी का एक छोटा सा मंदिर
है |
हमारा अगला
पड़ाव था सती अनुसूया मंदिर | कहते हैं माता अनुसूया ने यहाँ ध्यान लगाया था | इस
विषय में एक कथा प्रचलित है | माना जाता था की अत्रि ऋषि की पत्नी माता अनुसूया
जैसी पतिव्रता स्त्री सम्पूर्ण ब्रम्हांड में कोई और नहीं है , इस बात पर हमारी
त्रिदेवियों को इर्ष्या हुई और उन्होंने तीनो देवों को माता अनुसूया के पति धरम की
परीक्षा लेने भेजा | तीनो देव भिक्षुक का भेस बना कर उनके घर पहुंचे और उनसे
भिक्षा मांगी | माता ने तुरंत उन्हें भिक्षा देनी चाही तो उन्होंने कहा कि वे
भिक्षा तभी ग्रहण करेंगे जब माता निर्वस्त्र होकर उन्हें दान देंगी | माता ने अपने
तपोबल से भगवन की लीला समझ ली | वे बोलीं प्रभु मैं आपको निर्वस्त्र होकर भिक्षा
दूंगी किन्तु इसके लिए आप तीनों नवजात शिशु बन जाएं | इसपर तीनों देवों ने बालक
रूप धारण किया और माता का दूध पिया | तीनो देवियों को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और
उन्होंने माता से क्षमा मांग कर अखंड सौभग्य का वरदान लिया | यही स्थान सोम ऋषि ,
दत्तात्रेय ऋषि और दुर्वासा ऋषि का जन्म स्थान है जो तीनों देवों ने धारण किया था
| यहाँ भी मन्दाकिनी नदी बहती है |नदी के इस ओर मंदिर और उस और विन्ध्य का घना
जंगल है जो लगभग १०० किलोमीटर की दूरी पर पालम की वाइल्डलाइफ संचुरी से मिलता है |
घाट पर बंदरों का बोलबाला है |
इसके बाद हम
चले स्फटिक शिला की ओर | स्फटिक शिला यहाँ से पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक
ऐसी जगह है जहाँ प्रभु श्री राम के चरणों के निशान मिलते है | इतने बड़े निशानों को
देख कर हम सकते में आ गये जब मालूम हुआ की अजानबाहू श्री राम चौदह फुट के थे | यह
वो जगह है जहाँ श्री राम माता सीता का श्रृंगार कर रहे थे जब इंद्र के पुत्र जयंत
ने कौवे का भेस बना कर अपनी चोंच से सीता जी के पैर पर प्रहार किया | तब श्री राम
ने उस पर तीर चलाया | जयंत तीनो लोकों में गया लेकिन उस तीर ने उसका पीछा न छोड़ा |
तब हार मान कर उसने प्रभु और माता से क्षमा मांगी | किन्तु कमान से निकले हुए तीर
को वापस लाना असंभव होता है इसलिए प्रभु ने वह तीर जयंत की आँख में मारा जिससे वह
काना हो गया | और आजतक यह किवदंती है की कौवों को एक आंख से नही दिखता |
अगले पड़ाव
से पहले भूख अपनी चरम सीमा पर थी| हमे अगला सफ़र हनुमान धारा का तय करना था इसलिए
हमने वहीं पहुँच कर नीचे एक ढाबे में पूरी सब्जी खायी | “छप्पन भोग का मजा आता है
उस दो कौर में जो कठिन परिश्रम पर मिले” | खाना खा कर हम हनुमान धारा की ओर बढे |
650 सीढ़ियों से ऊपर जाकर हनुमान जी का प्राचीन मंदिर है | जब हनुमान जी ने लंका का
दहन किया तो उनके शरीर में अग्नि प्रज्वलन के कारण भीषण ऊष्मा थी | इसपर श्री राम
ने उन्हें यह ऊंचा और ठंडा स्थान दिया | यहाँ हनुमान जी की मूर्ति पर बांयी भुजा
पर पहाड़ के भीतर से फूटा हुआ एक झरना बहता है जिसके आदि और अंत का कोई पता नहीं चला
है | 650 सीढियां चटकती हुई धूप में किसी दंड जैसी लग रही थी | सर दर्द से फट रहा
था , उबकाई और चक्कर आ रहे थे , घुटनों ने आगे जाने से मना कर दिया और साँसे फूल
फूल कर हालत ख़राब हो गयी | लेकिन किसी तरह बैठते चलते हनुमान धारा पहुँच ही गये |
वहां से निचे का नज़ारा अप्रतिम था | मंदिर
में बहुत ठंडी हवा आ रही थी और झरने का पानी एकदम निर्मल और स्वच्छ था , पीने में
भी मीठा | भई वाह !! मजा आ गया !! तभी मालूम हुआ की ऊपर १०० सीढियों को चढ़कर सीता
रसोई है | मैंने तो जाने से मना कर दिया लेकिन सब लोगो का उत्साह देख कर सोचा की
भई अब सीता रसोई देखने के लिए कोई वापस तो इतनी ऊपर आएगा नहीं तो जहाँ 650 वहां
१०० और | चल दिए भैया अपना झोला उठाये और वह १०० सीढियाँ १५० कब हुई मालूम ही ना
चला | पर जब जमीन से 800 फीट ऊपर पहुंचे तो केवल एक ही एहसास हुआ कि,” वी आर टू
स्माल टू एग्जिस्ट ऑन अर्थ, बट वी डू “|
ऊपर से
नज़ारा इतना खूबसूरत था जिसका कोई हिसाब नही | सूरज भी पड़ोस में ही चमक रहा था |
जान कर हैरानी हुई की जीवन की पहुँच कहाँ तक है | एक ऐसी पर्वत की चोटी जिसपर
एक्के दुक्के पेड़ पौधे दिखते है वहां कुछ दूरी पर एक गाँव बसा था | एक स्कूल था
जिसमे पढ़ाने मास्टर नीचे से आते थे और बच्चे पढने भी जाते हैं | यहाँ एसी लगी
क्लासेज में भी लोग नही आते हैं |
बेहतरीन!!!
यही एक शब्द था यहाँ जिंदगी की जिंदादिली को सलाम करने के लिए !!!वापस उतर कर
इतनी थकान हो गयी थी की आगे चला नही गया और हम खाना पीना करके हम सो गये |
अगले दिन हम
निकले राजापुर के लिए | राजापुर में कालिंदी के तट पर गोस्वामी तुलसीदास का जन्म
हुआ था | जब वे पैदा हुए तो उनके मुह में पूरे ३२ दांत थे और उन्होंने पहला शब्द
राम कहा जिससे उनका नाम रामबोला पड़ा | उनके विषय में स्कूल में हम सबने पढ़ा ही है
लेकिन हममे से शायद ही कुछ लोग ऐसे हैं जो यह जानते हैं की वाल्मीकि रामायण श्री
राम के समय में लिखी गयी थी और तुलसीदास वाल्मीकि के ही अवतार थे जिन्होंने आज से साढ़े
पांच सौ साल पहले श्री राम चरित मानस लिखी थी | वहां तुलसीदास जी शिष्य के
ग्यारहवें पीढ़ी के पंडितों से मिले जिन्हें हम वास्तव में पंडित कह सकते हैं | ऐसे
पंडित जिन्हें धन लोभ नहीं था और ज्ञान के भंडार थे | तमाम छंद चौपाईयां सब उन्हें
ज़बानी याद थी और उनका विश्लेष्ण करके हम सबको बता रहे थे | वहीँ गर्भ गृह है जहां
तुलसी को उनकी माँ ने जन्म दिया था और सालिग्राम हैं जिनकी वे पूजा किया करते थे |
उस मंदिर में स्थापित दोनों मूर्तियाँ मनुष्यों की गढ़ी हुई नहीं है | वे दोनों
कालिंदी के गर्भ से प्राप्त हुई थी | कालिंदी के उस और है तुलसीदास जी की ससुराल | रत्नावली
नाम की एक विदुषी कन्या से उनका विवाह हुआ था और वे उसके प्रेम में इतने मग्न हो
गये की उन्हें दुनिया की फ़िक्र ही नही रही | तब रत्नावली की फटकार सुनने के बाद
उनके भीतर का भक्ति भाव जागा और अपनी पत्नी को ही गुरु मानकर उन्होंने इतने बड़े
ग्रन्थ श्री राम चरित मानस की रचना की |
बगल में ही
एक मंदिर है जहाँ तुलसीदास जी द्वारा रचित
वास्तविक राम चरित मानस का मात्र एक काण्ड रखा हुआ है | हम सभी यही जानते थे की
औरंगजेब ने अपने शासन काल में हिन्दू धर्म को नष्ट करने के लिए सभी हिन्दू ग्रंथो
को नष्ट किया था लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है | चित्रकूट और राजापुर ही मात्र ऐसी
जगहें हैं जहाँ औरंगजेब ने खुद मंदिर बनवाया था | कालिंदी का तट अकबर ने ही वहां
के लोगों को दिया था जिसके असली कागजाद फारसी अक्षरों में लिखे हुए अब तक उस मंदिर
की तिजोरी में बंद हैं | भारतीय पुरातत्व विभाग के अधिकारीयों ने उन्हें मसालों और
दवाइयों से कोट करके के सुरक्षित कर लैमिनेट करवा के रखा है | वास्तविकता यह है की
उसी मदिर के एक पुजारी के मन में लालच आया की असली रामायण यदि किसी राजा महाराजा
को बेच दी जाए तो अधिक धन की प्राप्ति होगी | इसी लोभ में वह उन्हें चुरा कर भागा
| जब लोगो को मालूम चला तो उसके पीछे पूरी सेना लग गयी , पकडे जाने के भय से उसने
सभी सात काण्ड नदी में फेंक दिए | मछुवारों और तैराकों की मदद से वे निकाल तो लिए
गये किन्तु हाथ से बनाया हुआ वो कागज गल गया | बहुत बचाने के बाद भी वह सुरक्षित न
रह पाए और आज सिर्फ अयोध्या काण्ड ही हमारे पास मौजूद है | देवनागरी लिपि में लिखी
गयी राम चरित मानस हालाँकि अवधी और बृजभाषा में ही रचित है किन्तु बीते साढ़े पांच
सौ सालों में हिंदी भाषा के कई अक्षरों में बदलाव आया है | यह सब महत्वपूर्ण
जानकारियाँ हमे किसी किताब में कभी न मिलती इसलिए उसकी एक प्रति आपसे बाँट रही हूँ
|
इतना सब
जानने सुनने के बाद यह मालूम हुआ की भारत की संस्कृति कितनी विराट है और हमारे मन
में इसे लेकर कितनी भ्रांतियां हैं | सबसे दुःख की बात यह है की जो स्थान हमारी
संस्कृति के लिए इतने गौरव का विषय है उस स्थान पर मूलभूत सुविधाऐ भी नही है |
टूटी सड़क , बिजली की ख़राब व्यस्था , ख़राब बाज़ार आदि| जिस स्थान पर इतने महत्वपूर्ण
घटनाए हुई हो उसे कोई सरकार कैसे अनदेखा कर सकती है | मेरे लेख के माध्यम से मैं
लोगो से अनुरोध करती हूँ की अधिक से अधिक लोग अपनी संस्कृति को जाने समझे , अपने
बच्चों को ऐसी जगहों पर अवश्य ले जाएं और यदि इसके विकास में आपका कुछ भी योगदान
हो सकता हो तो अवश्य दे| यह हमारे देश और हमारी विरासत के लिए हमारा एक अद्वितीय
योगदान होगा |
|| इति ||
-
आँचल
आपको बता दे की राम घाट मन्दाकिनी नदी के तट पर बना हुआ वह घाट है जहाँ वनवास के समय पर प्रभु राम सीता माता और लक्ष्मण जी के साथ केवट की नाव से प्रयाग से आये थे | केवट ने उन्हें गंगा पर करने से पूर्व अपने समस्त पूर्वजों को प्रभु द्वारा मोक्ष दिला दिया था | यहाँ घाट पर पहुँच कर प्रभु राम ने शिवजी की पूजा की | आज वहां बहुत प्राचीन और विशाल मन्दिर है | हमने राम घाट पर नौका विहार किया | मन्दाकिनी नदी का जल मंद गति से बहता है | घाट पर जल की गहरायी कहीं १० , १५ और २० फुट तक है | गौधूली के समय यहाँ गंगा आरती का दृश्य बहुत ही मनोरम होता है | यहीं पर भगवन राम की वनवासी छवि का मंदिर है जिसकी रक्षा एक विशालकायी हनुमान जी की मूर्ती करति है |
शाम को नौका विहार
और आरती के बाद कामदगिरी पर्वत की परिक्रमा करने की योजना बनी | कामदगिरी पर्वत के
मुख्य देव हैं कामता नाथ | इनके दर्शन और पर्वत की परिक्रमा को सभी मनोकामनाओं का
पूरक माना जाता है | पर्वत के चरों ओर साढ़े पांच किलोमीटर के परिक्रमा मार्ग में कई
मंदिर बने हुए है | साढ़े ग्यारह वर्षो के लम्बे समय सह अनुज व् पत्नी संग श्री राम
के यहाँ निवास के कारण चित्रकूट धाम की भूमि को हर पग पर पावन माना गया है | मार्ग
के किनारे-किनारे राम मुहल्ला, मुखारबिंद, साक्षी गोपाल, भरत-मिलाप आदि कई देवालय बने
हुए हैं। इसकी दक्षिणी दिशा में एक छोटी
पहाड़ी पर लक्ष्मणजी का एक मंदिर भी है। कहा जाता है कि वनवास में लक्ष्मण जी यहीं
रहा करते थे। परिक्रमा मार्ग में ही भरत मिलाप मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि यहीं भरत भगवान श्री राम
से मिलने आए थे। यहीं पर जानकी कुण्ड भी स्थित
है जहाँ माता सीता स्नान किया करती थी | यह सब देकते देखते काफी समय बीत गया और
थकान के कारण हमने भोजन करके आराम करने का निश्चय किया |
No comments:
Post a Comment