Sunday, 6 March 2016

ये बंदिनी; जीवन जेल की सलाखों के पीछे


जब चारों ओऱ घुप्प अंधकार हो तब रौशनी की कीमत समझ में आती है| सलाखों के पीछे का जीवन यकीनन बेहद मायूस होता होगा | अपने अपनों से दूर गैरों के बीच अँधेरे कमरों में ‚ अपराध बोध के साथ जीवन काटना बेहद कठिन काम है | महिला दिवस के इस अवसर पर अज हम लाये हैं उन महिलाओं की कहानियां जो किसी न किसी जुर्म की सज़ा में जेल की चार दिवारी में बंद हैं | ये किसी की माँ ‚ किसी की पत्नी ‚ बेटी ‚ बहु या दोस्त हैं | किसी भी आम महिला की तरह उन्हें भी अपने घर परिवार की जिम्मेदारियों की परवाह होती है |
इस देश की आधी आबादी औऱतों की है और जेल में बंद कुल कैदियों का करीब साढ़े चार फीसदी हिस्सा जेलों में कैद है, कुछ गुमनाम, कुछ हमनाम, कुछ उदास, तो कुछ की आंखों में सवाल, औऱ दिल में हालात की कुलबुलाहट।
यूँ हुआ एक बार की लखनऊ के नारी बंदी निकेतन में मुझे जाने का अवसर मिला |दिल में बड़ी उत्सुकता थी की कैसा होता होगा कैदियों का जीवन |जेल, ये शब्द ही डराता है, सलाखें, काली कोठरियां औऱ कैदियों को घूरती दीवारें, जेल तो ऐसी ही होती है| मैंने अंदर जाने की सभी औपचारिकताएं पूरी की और अंदर जाकर देखा एक खुला आंगन, बागीचा जिसमे कई तरह के औषधियों वाले पौधे और फलदायक पेड़ लगे थे , एक ओर एक तबेला था जहाँ कुछ मवेशी बंधे थे | इन महिला कैदियों को जिन्हें मैं बंदिनी कहूँगी उन्हें वहां घूमने की आज़ादी थी जेल की चहारदीवारी ऊंची थी लेकिन जेल के भीतर धूप आती थी|
हमारा मकसद इन्हें कैद कर के रखने का नही, अपने गुनाहों को ये समझती है, खुद को व्यस्त रखें कान करे ताकि मन बहला रहे| मन की शांति के लिए इन्हें तमाम योगासन और ध्यान प्रक्रियाएं भी सिखाई गयी हैं | इनमे से कई बंदिनियों को उम्रकैद की सज़ा मीली है|जाहिर है गुनाह संगीन हैं, सजा भी लंबी, ऐसे में कहीं पछतावे के आंसू बहते हैं तो कहीं दीवारों से बातों में रातें कटती हैं, कहीं बच्चों की याद में नींद उड़ती है। जेल यहां मजबूरी है तो जेल ही विकल्प भी है। जेल बेड़ी है तो वही जेल आजादी भी है। जेल के भीतर ये दोनों पहलू रह-रहकर मेरे सामने आ-जा रहे थे। जिस भी कैदी से बातचीत हुई, उसके बच्चों का, उसके परिवार का मोह साफ नजर आया।
इनमे से कई ऐसी भी थी जिनका जुर्म विचाराधीन है और इसके अब्व्जूद वो सज़ा काट रही हैं| भारत की जेलें ऐसे विचाराधीन कैदियों से पटी पड़ी हैं। आंकड़ों के मुताबिक, जेल में बंद हर तीन में से दो कैदियों का केस अदालतों की तारीखों में गुम है। कुल 2.8 कैदियों में से करीब 3 हजार अपना फैसला होने के इंतजार में पांच साल से भी ज्यादा वक्त जेल में काट चुके हैं |
किन्तु यहाँ सभी महिलाओं की मूल जरूरतों का ध्यान रखा जाता है |आईये इन पर एक नजर डालते हैं –
महिला बंदियों के लिये सैनिटरी नैपकिन की व्यवस्था समस्त कारागारों में की गयी है|
महिला बंदियों द्वारा स्वयं भोजन प्रबन्धन की व्यवस्था चरणबद्ध रूप से की जा रही है।
जेल मैनुअल में विहित प्राविधानानुरूप महिला बंदी अपने साथ 06 वर्ष तक की आयु के बच्चों को साथ में रख सकती है। बच्चों के लिये प्रदेश की 10 कारागारों में क्रेच भी स्थापित है।
इसके अतिरिक्त नारी बंदी निकेतन, लखनऊ की महिला–बंदियों के बच्चों के लिये पब्लिक स्कूलों में शिक्षण की भी व्यवस्था की जा रही है। बंदियों को फल संरक्षण, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, क्रोशिया आधारित बुनाई, अचार व चटनी बनाने की विधि आदि रोजगारपरक उद्यमों में प्रशिक्षण दिलाया जाता है।
आध्यात्मिक उन्नयन हेतु योग, ध्यान प्रशिक्षण तथा हवन यज्ञ आदि के आयोजन और बंदियों के चिकित्सा परीक्षण व उपचार के सम्बन्ध में स्वास्थ्य परीक्षण शिविर, नेत्र परीक्षण शिविर तथा उनके बच्चों के लिये पोलियो कैम्प व टीकाकरण कार्यक्रमों का आयोजन समय–समय पर किया जाता है। विभिन्न स्वयं सेवी संस्थाओं द्वारा महिला बंदियों के लिये शाल आदि तथा बच्चों के लिये गर्म वस्त्र, जूते व मोजे आदि की व्यवस्था की जाती है।
प्रत्येक सोमवार को स्वयं सेवा संस्था द्वारा मेडिकल तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी व्याख्यान दिलाये जाने तथा एड्स एवं गम्भीर बीमारियों के बारे में जानकारी दिये जाने की व्यवस्था की गयी है। विभिन्न स्वयं सेवी संगठनों के तत्वाधान में साक्षरता शिविरों का आयोजन किये जाने और प्रत्येक निरक्षर महिला बंदियों को कार्यरत महिला अध्यापिका द्वारा साक्षर बनाये जाने की व्यवस्था भी समय–समय पर की जाती है।
व्यवस्था कुछ भी हो लेकिन जेल एक जेल ही होती है और इनमे इन बंदिनियों का जीवन बेहद कठोर होता है | १९६३ में बिमल रॉय की फिल्म बन्दिनी में एक ऐसी ही कैदी का किरदार नूतन ने निभाया था जिसे कत्ल के दोष में उम्रकैद की सज़ा हुई थी | आज भी भारत की जेलों में ऐसी अनगिनत बंदिनी हैं, हर बंदिनी की एक कहानी और मानसिक यातना है। जिनकी दुनिया जेल की अंधेरी काली कोठरी है, जहां हर पल पथरीली दीवार पर गुनाह चमकते हुए दिखते हैं| ये औरतें भी किसी परिवार का हिस्सा हैं जिन्हें बेशक महिला दिवस पर एक सलाम करना तो बनता है|

आँचल “प्रवीण” श्रीवास्तव
सहायक प्रोफेसर; पत्रकारिता एवं जनसंचार

Saturday, 5 March 2016

पढेगी लड़की तो बढेगा भारत



बेटी बचाओ बेटी पढाओ का नारा लेकर हमारे प्रधान मंत्री जी ने लोगों के दिमाग में इस सोच का बीज जरुर डाला है की बेटियों को आगे बढ़ा कर ही भारत में तरक्की को सही आयाम या दिशा दी जा सकती है | हमारे यहाँ पुराणों में कहते हैं यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ति तत्र देवता यानी जिस जगह स्त्री की पूजा होती है उसका सम्मान होता है वहां देवता निवास करते हैं | स्त्री को हमारी सभ्यता में गृह लक्ष्मी की उपमा दी गयी है |
प्राचीन काल से ही स्त्री की शिक्षा पर विशेष बल दिया गया है | चाहे वो सीता हो या गार्गी सभी शास्त्रार्थ में माहिर थी |विद्योत्मा जैसी विदुषी नारी का उदाहरण आज भी दिया जाता है |उन्हें कई विशेषाधिकार भी प्राप्त थे| अपने लिए वर का चुनाव वे उसकी विद्वता और शौर्य व् पराक्रम के बल पर स्वयम करती थी जिसे स्वयम्वरकहते हैं| परन्तु मध्यकाल में भारत में स्त्रियों की दशा में काफी गिरावट आई | उसे पर्दे के पीछे रहने पर विवश किया गया | सती प्रथा और बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं का चलन बढने लगा | फिर धीरे धीरे बच्चियों को बोझ समझा जाने लगा और कोख में ही उन्हें खत्म क्र देने का रिवाज़ हो गया |
सरकार और समाज सुधारकों के तमाम प्रयासों के बाद इस पर दंड का प्रावधान  किया गया जिससे कि इस समस्या का जड़ से निदान हो| किन्तु लडकियों को आगे न बढ़ने देने की सोच ने देश की विकास में बहुत हानि पहुचाई है |
कहते हैं स्त्री-पुरुष जीवन-रूपी रथ के दो पहिये हैं, इसलिए पुरुष के साथ साथ स्त्री का भी शिक्षित होना उतना ही जरुरी है| यदि माता सुशिक्षित होगी तो उसकी संतान भी सुशील और शिक्षित होगी । शिक्षित गृहणी पति के कार्यों में हाथ बंटा सकती है, परिवार को सुचारु रूप से चला सकती है । स्त्री-शिक्षा प्रसार होने से नारी आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर बनेगी। अपने अधिकारों और कर्त्तव्यों के प्रति सचेत होगी ।
आज सरकार बेटी को बचाने और बेटी को पढ़ाने की अनोखी मुहीम पर है | कई वजहें हैं जिन कारणों से लडकियाँ अपनी शिक्षा को आगे नहीं बढ़ा पाती | इनमे से स्वास्थ्य और शौचालय बड़ी वजहें हैं | भारत सरकार ने गाँवों और दूर दराज के इलाकों में शौचालय का उत्तम प्रबंध करने का बिल दिया है जिससे इन्हें मासिक धर्म के कारण शिक्षा में आने वाली रुकावटों से छुट्टी मिलेगी |
मुफ्त शिक्षा स्कालरशिप और कन्या विद्या धन जैसी कई नयी स्कीम हैं जो भारत सरकार की बेटी बचाओ बेटी पढाओ की मुहीम को सफल बनती हैं| लड़कियों का पढ़ना एक नहीं दो परिवारों को लाभप्रद होगा | विश्व के किसी भी कोने में किसी भी कार्य में महिलायें कहीं भी पुरुषों से पीछे नहीं है और इसीलिए स्त्री को समान शिक्षा का पूर्ण अधिकार है | लड़कियों की शिक्षा का प्रण लेते हुए इसी बढ़ते भारत को मेरी ओर से अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ| क्योंकि अगर पढेगी लडकी तभी तो बढ़ेगा भारत|

आँचल “प्रवीण”श्रीवास्तव
सहायक प्रोफेसर पत्रकारिता एवं जनसंचार

Friday, 4 March 2016

ये अपने अधिकार की बात है



क्योंकि बात चल रही है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की और हर जगह महिलाओं से सम्बंधित लेखों‚ गीतों‚ ऑडियो ‚ विडियो की भरमार है | महिला जागरूकता व सशक्तिकरण के मुद्दों का बोलबाला है | इसी विषय पर आइये आज हम आपको भारतीय संविधान में महिलाओं को मिले कुछ मौलिक अधिकारों के विषय में बताते हैं | क्योंकि आज के समय में महिलाओं की भागीदारी हर क्षेत्र में बढ़ रही है तो ये जरूरी है उन्हें अपने मूल अधिकारों के विषय में जानकारी हो ताकि किसी भी समय और किसी भी जगह पर उनके साथ किसी भी तरह से भेदभाव न हो |
कई एक्सपर्ट्स से बातचीत करने के बाद और गहन शोध के बाद हमने आपके लिए कुछ ऐसे मौलिक अधिकारों की एक सूचि बनाई है जिसकी जानकारी होना आपके लिए आवश्यक है |
·         पिता की सम्पत्ति पर अधिकार- लडकी का अपने पिता की सम्पत्ति पर उतना ही अधिकार है जितना की लडके का और माँ का |यह अधिकार शादी के बाद भी कायम रहता है |
·         पति से जुड़े अधिकार- शादी के बाद पत्नी का पति की संपत्ति पर मालिकाना अधिकार तो नहीं लेकिन संविधान के अनुसार पत्नी पति से भरण पोषण और गुज़ारा भत्ता की हकदार है | वैवाहिक विवादों से सम्बन्धित मामलों में कई क़ानूनी विधानों से गुज़ारा भत्ता मिलने का प्रायोजन है | सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अनबन के मामलों में पत्नी बच्चों समेत अपना गुज़ारा भत्ता मांगने का अधिकार रखती है |
·         कोई भी महिला अपने हिस्से में आई पैत्रक सम्पत्ति को किसी भी समय बेच सकती है जिसमे कोई भी दखल नहीं दे सकता | वह इसकी वसीयत भी करा सकती है और जब चाहे इससे अपनी सन्तान को भी बेदखल क्र सकती है |
·         डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट – इस एक्ट का प्रावधान महिलाओं को घरेलु हिंसा से आजादी दिलाने के लिए किया गया है | किसी भी तरह की भावात्मक ‚मानसिक व शारीरिक प्रताड़ना या उत्पीड़न ‚ किसी भी डोमेस्टिक रिलेटिव द्वारा इस दायरे में आता है | महिला को खर्च न देना ‚ उसकी सैलरी ले लेना ‚ उसके दस्तावेजों को कब्जे में लेना ‚ शारीरिक का मानसिक उत्पीड़न करना घरेलु हिंसा में शामिल है |
·         डीवी एक्ट की धारा १२ के तहत महिला किसी भी मेट्रोपोलिटन कोर्ट में शिकायत दर्ज करा सकती है |डीवी एक्ट ३१ के तहत प्रतिवादी पर केस बनता है | दोषी पाए जाने पर गैर ज़मानती केस होता है जिसमे १ साल की जेल और २० हजार तक का जुर्माना भी हो सकता है |
·         लिव इन रिलेशन में रहने वाले जोड़े भी डीवी एक्ट के अंतर्गत आ सकते है | इसके लिए कुछ विशेष नियम है | इसमें राईट तो शेल्टर मिलता है लेकिन रिश्ता खत्म होने पर ये भी खत्म हो जाता है|
·         आईपीसी की धारा ३७५ के तहत रेप या किसी भी प्रकार के यौन शोषण पर सख्त कानून बनाये गये है | बलात्कार के उन मामलों में जिनमे महिला की मृत्यु हो जाये या वह कोमा में चली जाए तो उम्र कैद या फांसी की सज़ा तय की गयी है |
·         वर्कप्लेस पर भी महिलाओं को तमाम अधिकार मिले हैं |
·         इसके अलावा अनुच्छेद ४२ के तहत मैटरनिटी लीव का प्रावधान है |
·         साथ ही अबोर्शन करवाने में महिला की सहमति को कोर्ट से मान्यता दी गयी है | इसके अतिरिक्त दहेज़ सम्बन्धी प्रताड़ना में ३ साल से 7 साल तक की कैद का प्रावधान है |
इनके अलावा भी है ध्यान देने वाली बातें :-
·         एक महिला की तलाशी केवल महिला पुलिसकर्मी ही ले सकती है |
·         महिलाओं को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले हिरासत में नहीं लिया जा सकता |
·         गिरफ्तार महिला के सम्बन्धी को सूचना देना पुलिस की ज़िम्मेदारी है|
·         यदि लॉकअप में रखने की नौबत आये तो महिलाओं के लिए अलग व्यवस्था होनी चाहिए|
·         महिलाओं को मुफ्त क़ानूनी सलाह देने का प्रावधान है |
इनके अलावा भी महिलाओं को तमाम तरीके की सहूलियतें और अधिकार प्राप्त हैं जिनकी जानकारी होना उनके लिए अति आवश्यक है | इस जानकारी के आभाव में कई बार उनके साथ पक्षपात होता है | ऐसे में महिलाओं को चाहिए की वे सभी मामलों में क़ानूनी रियायतों को जानें और उनका प्रयोग करें|

आँचल “प्रवीण” श्रीवास्तव
सहायक प्रोफेसर‚ पत्रकारिता एवं जनसंचार

इश्क्परस्तों का शहर लखनऊ



इश्क मोहब्बत और प्यार का हफ्ता चल रहा है | जहाँ देखो वहां फिजाओं में इश्क का ही दौर है | कोई ऐसे तो कोई वैसे सब बस प्यार बांटने में व्यस्त हैं | अगर हम बात करें अदब के शहर लखनऊ की तो जैसा की इस शहर के बारे में कहा गया है कि यहाँ दिलों में प्यार है जहाँ नज़र घुमाइए बहार ही बहार है‚ ये लखनऊ की सरज़मीं ये लखनऊ की सरजमीं | यहाँ के लोगों का ये मानना है की प्यार को जताने के लिए उसका इज़हार करने के लिए या उसके लिए कुछ भी कर गुराज्रने के लिए उन्हें किसी एक दिन या एक हफ्ते की ज़रूरत नहीं| ये वो इशकजादे हैं जो मोहब्बत के गुलिस्तान को हमेशा तरोताज़ा रखते हैं | इनके लिए प्यार के मायने कहीं न कहीं संस्कारों से जुड़े है | इश्क चाहे महबूबा से हो ‚ परिवार से हो या सरज़मीं से ही क्यों न हो ये कहीं भी पीछे नहीं हटते|
अब अपनी फिल्मों को ही ले लीजिये चाहे वो मैं मेरी पत्नी और वो के मिथिलेश हों या इशकजादे की जोया कुरैशी बुलेट राजा के राजा भैया हो या तनु वेड्स मनु के मनु शर्मा और हाँ दावते इश्क में एक पागल आशिक की भूमिका निभाने वाले तारिक सब ही लखनऊ की इश्क नवाजी को बखूबी बयां करते हैं | वतन से इश्कपरस्ती निभाने वाले हमारे अपने कैप्टन मनोज पाण्डेय और न जाने कितने ही और | सभी किसी न किसी तरीके से मोहब्बत को दर्शाते हैं|
यहाँ की गंगा ज़मुनी तहज़ीब प्यार में किसी भी तरह की दीवार का सामना करने से नहीं घबराती | धर्म‚ जाति‚ रंग ‚ रूप किसी भी तरह की अड़चन इनके प्यार को कमजोर नहीं कर सकती| अपने प्यार को मुकाम तक पहुचाने वाली रुचिका बताती है की जिस लड़के से उन्हें प्यार था वो कुंडली से मंगल दोष युक्त था | तमाम पंडित ओझा के चक्कर काटने के बाद जब उन्हें कोई चारा नहीं मिला अपने घर वालों को समझाने का तब उन्होंने ने इन्टरनेट का सहारा लेकर कई दिनों तक इसपर शोध किया |उनके इस रस्ते में कई रुकवटे आई पर वो डटी रही और बमुश्किल उन्होंने इस अन्धविश्वास पर जीत हासिल कर अपने परिवार को अपने साथ किया | आज उनकी शादी को दो साल हो रहे है और वे दोनों और उनके परिवार सब स्वस्थ और सुखी हैं | ऐसे जीता उन्होंने अपने प्यार को अंधविश्वास की लड़ाई में|

युहीं लखनऊ वालों ने इश्क को यहाँ की फिजाओं में हमेशा की तरह से जिंदा रखा है | वे प्यार के इस त्यौहार को किसी एक दिन ही नहीं पूरे साल मनाते हैं |