Monday, 20 June 2016

सुपर डैड्स को समर्पित ये फिल्मे



भारतीय फिल्मों ने हमेशा रिश्तों का कारोबार किया है | हमारे समाज में हर रिश्ते का अपना एक अलग महत्व है | इस महत्व को हमारी सिनेमा के निर्माता निर्देशकों ने खूब भुनाया | फिल्म चाहे किसी भी रिश्ते पर बनी हो उसका यूएसपी हमेशा प्यार और सम्मान होता है | हमारे समाज में माता पिता को देव तुल्य स्थान दिया गया है यानि की धरती पर यदि कोई भगवन है तो वो हैं हमारे माता पिता| अब इस रिश्ते पर बनी फिल्मों को बाज़ार में बेचने के लिए ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती क्योंकि हर कोई इसे खुद से जुड़ा हुआ पाता है | तो इस फादर्स डे हम आपको बताते हैं पिता और बच्चों के सम्बन्धों पर आधारित फिल्मों के बारे में –
बूढ़े पिता के संघर्ष की कहानी-
साल २०१५ में आई शुजीत सरकार की फिल्म पीकू ने बहुत कमाई की | विषय था बाप बेटी का सम्बन्ध| फिल्म में अमिताभ एक ऐसे बूढ़े बाप बने हैं जो नौकरी से रिटायर्ड हैं और बिमारियों से परेशान| ऐसे में दीपिका पादुकोण ने एक ऐसी बेटी का किरदार निभाया है जो अपने पिता की बीमारी के साथ उनके बिगड़ते हुए मानसिक हालातों को अपने करियर के साथ साथ सम्भालती है |
अपने बेटे के साथ अजीब बीमारी से लड़ते पिता की कहानी-
साल २००९ में अमिताभ ; अभिषेक और विद्या बालन अभिनीत फिल्म पा ने सिनेमा जगत के कई रिकार्ड्स ध्वस्त किये जब प्रोजेरिया से पीड़ित बेटे का किरदार निभाया अमिताभ बच्चन ने और उसके पिता का किरदार खुद उनके बेटे अभिषेक ने निभाया| एक बेहद मार्मिक कहानी जो १३ साल के एक बीमार बच्चे की है जिसमे साहस और आत्मविश्वास कूट कूट कर भरा है | आरबाल्कि ने इस फिल्म में पिता और पुत्र के एक अनोखे रिश्ते को दर्शाया है जो एक दुसरे के बहुत अच्छे दोस्त है |
मानसिक रूप से विक्षिप्त पिता और बेटी की कहानी-
२००५ में आई अजय देवगन और सुष्मिता सेन अभिनीत फिल्म मैं ऐसा ही हूँ में अजय एक मानसिक रोगी पिता हैं जो अपनी बेटी को अपनी कस्टडी में लेने के लिए जान लगा कर लड़ता है और कोर्ट में साबित कर देता है की वो अपनी बेटी की ज़िम्मेदारी उठाने वाला एक बेहतर पिता बन सकता है | फिल्म का गाना पापा मेरे पापा बहुत फेमस हुआ था |
बेटे की मौत के लिए न्याय मांगते पिता की कहानी-
२००५ में ही बनी फिल्म विरुद्ध में अमिताभ अपने बेटे जॉन अब्राहम की मौत के लिए सिस्टम से लड़ जाने की कहानी है | अपने बेटे की हत्या को साबित करके उससे न्याय दिलाने के लिए एक पिता ने किस तरह से संघर्ष किया और समाज के अमानवीय तत्वों से लडाई की यह पूरी कहानी इसी के इर्द गिर्द नाचती है |
सिंगल फादर के तौर पर पिता की कहानी-
२००२ में आई फिल्म रिश्ते ने हालाँकि कुछ खास कारोबार नहीं किया लेकिन जब भी बाप और बच्चों के रिश्तों पर बनी फिल्मों की बात अति है तो इसका नाम ज़रूर लिया जाता है | किस तरह कठिनाईयों से जूझकर एक सिंगल फादर के तौर पर अपने बच्चे को अच्छी परवरिश दी जाती है इस पर बनी इस फिल्म को एक विशेष दर्जे के लोगों ने काफी पसंद किया |
और लम्बी है यह लिस्ट
यूँ तो ये सब कहने को फिल्मे हैं लेकिन कहीं न कहीं इन्होने एक पिता के संघर्षों को और अपने बच्चों से उसके एक अनोखे रिश्ते की नब्ज़ को छुआ है | ये फेहरिस्त बहुत लम्बी है जिसमे १९८३ में बनीं फिल्म मासूम ; २००२ में बनी पिता; १९८३ में बनी अवतार; डिअर डैड ; उड़ान २०१०; १९९६ में बनी फिल्म ख़ामोशी; १९९९ में बनी फिल्म सूर्यवंशम आदि भी हैं |

पापा मेरे पापा



आपसे किस तरह शुक्रिया अदा करूँ | माँ ने जरुर मुझे जन्म दिया है पर आज मैं जो भी हूँ वो आपके खून पसीने की मेहनत है | बेशक मेरी बातें किसी फिल्म की चीज़ी लाइन्स लग रही होंगी लेकिन ये बात अक्षरशर सत्य है की बेशक इश्वर के बाद माँ से बड़ा कोई नहीं पर अगर पिता न हो तो माँ भी जीवन का सृजन कैसे करे | अपने बच्चे को अपनी जान देकर पालना; घनी दोपहरी ; तेज़ बारिश या कडकडाती सर्दी में भी दौड़ धूप करके उसकी एक आवाज़ पर आसमान ज़मीन एक कर देना | ये सब एक पिता ही कर सकता है | बीते दिनों ऐसे कई लोगों से मेरी मुलाक़ात हुई जो एक बेहतरीन सीख में बदल गयी की केवल मेरे पापा ही नहीं दुनिया के सभी पापा अपने बच्चो के लिए जान देते हैं |
रिक्शेवाला पापा
अभी कुछ रोज़ पहले ही मुझे रात में किसी काम से जाना पड़ा और गाड़ी गड़बड़ होने के कारण में पैदल घर से निकली ये सोच कर की आगे रिक्शा करुँगी | बहुत दूर तक कोई ऑटो या रिक्शा खाली नहीं था | फिर अँधेरे में धीरे धीरे एक ई-रिक्शा वाला आया | मैंने उसे रोका और बोला की मुझे फलां जगह जाना है | वो बोला मैडम चलता हूँ पर ज़रा ये बर्फ बच्चों को दे दूं वे इंतजार करते होंगे ; गर्मी बहुत है | फिर पास में ही अपने घर पर जल्दी से बर्फ देकर मुझे मेरे गन्तव्य पर जाने को तैयार हो गया और फिर रास्ते भर अपने बच्चों की अठखेलियाँ सुनाता गया |
जूस वाले पापा
ऐसा पहली बार नहीं हुआ की मुझे कोई इतना मेहनती आदमी मिला हो| कुछ रोज़ पहले मैं कोचिंग जाती थी | वहां से लौटते समय जूस के ठेले पर मौसम्बी का जूस पीने की आदत थी | और आदतन सबसे बतियाना मेरा पसंदीदा शगल है | उन जूस वाले अंकल ने एक रोज मुझसे कहा बिटिया तुम्हारी जैसी ही मेरी एक बेटी है जो फलां कॉलेज से इंजीनियरिंग क्र रही है और एक बेटा है जो फलां कालेज से बीएससी क्र रहा है | मैंने पूछा की आप और कुछ भी करते हो तो बोले बस गर्मी में जूस का ठेला लगाता हूँ और जाड़ों में मूंगफली | बाकी कुछ लोन लिया है | बड़ा गर्व हुआ सुनकर की कैसे जेठ की चटख धूप में वो बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए मेहनत करता है |
ये तो बस एक आध मामले हैं |मेरे पास ऐसी कई कहानियाँ है जो खत्म होने का नाम नही लेती | एक पिता का अपने बच्चों के लिए संघर्ष किन्ही शब्दों में बांधा नही जा सकता है| यह एक अनंत समुद्र है जिसके वेग को बाँध पाना बेहद मुश्किल काम है |

पापा तुम मेरी माँ भी हो और मान भी



एकल अभिभावक होना अपनेआप में एक बड़ी चुनौती है और ये चुनौती और बड़ी साबित हो सकती है अगर अभिभावक एक पुरुष है तो | यानी की पापा लोगों के लिए सिंगल पैरेंटहुड थोडा मेहेंगा साबित हो सकता है | मसलन एक महिला के लिए घर और बाहर की ज़िम्मेदारी निभा पाना कुछ हद तक आसान होता है क्योंकि उसको अमूमन यह सब करने की आदत होती है | हमारे समाज में अब अगर मोटे तौर पर देखा जाए तो महिलाओं की अधि से अधिक आबादी घर और बाहर दोनों के काम कर पाती है | वहीँ दूसरी ओर पुरुषों को हमेशा से ही केवल बाहरी कामों के लिए दक्ष बनाने की कवायद चलती है | अब ऐसे में इश्वर न करे महिला की मृत्यु हो जाए या किन्ही कारणोंवश उसे पुरुष से अलग रहना हो और बच्चों की ज़िम्मेदारी पुरुष पर हो तो यह काफी चुनौतीपूर्ण साबित होता है |
हालाँकि सिंगल फादर होना और बच्चे को पलना एक मुश्किल काम है लेकिन भारतीय मर्द इसमें पीछे नहीं है | बच्चों की छोटी से छोटी ज़रूरतों को पूरा करने से लेकर घर की एक एक चीज़ का ख्याल रखना; यह मर्द इनमे कहीं से कम नहीं | लेकिन अगर बात बच्चा गोद लेने की हो तो मामला कुछ मुश्किल हो जाता है | भारत में गोद लेने की प्रक्रिया सिंगल पेरेंट्स के लिए कुछ जटिल है और सिंगल फादर के लिए तो बहुत मुश्किल |
सिंगल फादर केवल एक मेल बच्चे यानि की लडके को गोद ले सकता है | इस बात का विवरण भारतीय हिन्दू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट १९५६ के तहत दिया गया है | वह किसी लड़की को गोद नहीं ले सकता | टीवी एक्टर राजीव खंडेलवाल ने एकबार लडकी गोद लेने की याचिका दायर की थी | लेकिन उसे इस बात पर ख़ारिज कर दिया गया की वह अबतक सिंगल हैं | हालाँकि अभिनेता राहुल बोस ने अंडमान निकोबार की एक चैरिटी से ६ बच्चों को गोद लिया लेकिन वे सभी लडके हैं |
आंकड़े बताते हैं की देश की कई अदालतों में एकल अभिभावक और विशेषकर सिंगल फादर के बच्चों को गोद लेने की कई याचिकाएं लंबित पड़ी हैं | शायद ही आने वाले समय में इनपर कोई सुनवाई हो |
इस विषय पर कोंसेलेर विभिन्न तर्क देते हैं| उनका मानना है की सिंगल फादर होना अधिक मुश्किल इसलिए है क्योंकि पिता अक्सर गुस्सैल स्वाभाव के होते हैं और कई बार अधीर भी | उन्हें कम मालूम होता है की बच्चों को कब डांटना है और कब प्यार करना है | उनके लिए बच्चे को माँ और बाप दोनों का प्यार देना थोडा अधिक मुश्किल होता है |
इसके विपरीत कुछ ऐसे पिता भी है जो बच्चों को माँ के न होते हुए बखूबी पाल रहे है और वे इन बातों को एक सिरे से नकार देते हैं | हाल ही में आदमियों के सिंगल पैरेंट होने के अनुपात में इजाफा आया है | इससे एक बात तो तय है की पुरुषों के अंदर महिलाओं के काम करने में अब कोई शर्म नहीं रही | यह एक सकारत्मक सोच है जो इस बात की ओर इशारा करती है की मर्द अब जानते हैं की हर काम हर कोई कर सकता है | काम जेंडर बायस्ड नहीं | वह महिला और पुरुष दोनों के लिए एक समान है |

श.... कोई है !!



कभी आपको ऐसा लगा जैसे कोई है जो आपका पीछा कर रहा है | कभी ऐसा जैसे बिस्तर के नीचे कोई तो है | किसी के आसपास होने का एहसास होता है| तो यकीं मानिये ये वाकई में किसी का होना ही है | किसी रोज़ कोई डरावनी कहानी सुनना या फिर कोई फिल्म देखना और फिर इस एहसास का और गहरा जाना| यह बातें ऐसी ही हैं जैसे की हमने आजतक इश्वर को नहीं देखा पर उसका होना हम मानते हैं ; उसकी मौजूदगी का एहसास हमें होता रहता है | और ऐसा ही होता है नकारात्मक सत्ताओं के साथ|
क्या होती है ये नकारात्मक सत्ताएं-
हमारी पहचान हमारे शरीर से होती हैं और जब शरीर ही नहिं है तो मृतक आत्मा को देख पाना और पहचान पाना मुश्किल होता हैं। भूत-प्रेतों को ऐसी नकारात्मक सत्ताएं माना गया है, जो कुछ कारणों से पृथ्वी और दूसरे लोक  बीच फँसी रहती हैं।  इन्हे बेचैन व चंचल माना गाया है, जो अपनी अप्रत्याशित मौत के कारण अतृप्त हैं।
हर समय हो सकता है किसी के होने का एहसास
वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर इसको इस तरह से समझ सकते हैं की आप लगातार कई दिनों तक कोई ऐसा काम करें जो आपके रोज़मर्रा के ढर्रे से अलग हो तो यकीनन आपको सपने भी उसी तरह के आएँगे और बुरी शक्तियों से मन के किसी कोने में हमारा डर उजागर होकर फ्रंट सीट पर आ जाएगा और हर समय उसके होने का एहसास दिलाएगा|
दिमाग के तीन हिस्से होते हैं याददाश्त के कारक
हमारे दिमाग के तीन हिस्से होते हैं – कॉन्शियस ; सब कॉन्शियस और अन कॉन्शियस और यही तीनो हिस्से हमे कुछ भी याद रखने के ज़िम्मेदार होते हैं | तो हमें किसी भी घटना को देखने के बाद जो कुछ भी महसूस होता है वो इन्ही तीनो हिस्सों के कारण| इस तरह के दिमागी फितूर को दूर करने के लिए अपनी एटीएम शक्ति को मजबूत करना बेहद ज़रूरी है |
सच में होती हैं बुरी ताकतें
लेकिन मैं इस बात को बिलकुल नहीं नकारती की दुनिया में बुरी शक्तियाँ नही होती | जिस तरह किसी भी सर्किट को पूरा करने में बिजली के पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों तारों का प्रयोग होता है उसी तरह दुनिया को चलाने में पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों ताकतें सक्रीय होती है | और यदि पॉजिटिव शक्ति हमारा ईश्वर है तो नेगेटिव शक्ति को राक्षस हो सकता है | लेकिन विज्ञान के पास न इसका कोई प्रूफ है और न कोई जवाब |
शोध साबित करते हैं इनका होना
२००७ में होर्वोर्ड यूनिवर्सिटी के फिजिक्स के एक प्रोफेसर ने यह दावा किया है कि कुछ कण वास्तव में कण नहीं होते हैं इन्हें अनपार्टिकल भी कहते हैं | ये पदार्थ कणों और उर्जा कणों का मिला जुला रूप होते हैं | ये अनपार्टिकल एक जगह पर कई सारे हो सकते हैं | इनका सम्पर्क पदार्थ यानि मेटर से बहुत कम होता है | इन्हें वैज्ञानिक ब्रम्हांड की कुछ घटनाओं से जोड़कर डार्क मैटर का नाम देते हैं |
विज्ञान के पास नहीं है कोई जवाब
कुल मिलाकर मामला यह है की वैज्ञानिक इन अनपार्टिकल तक पहुचने की दौड़ में तो हैं लेकिन अब तक उनके पास इस विषय पर अधिक थ्योरी नही है | पर अगर आम आदमी की भाषा में समझे तो भूतों के बारे में विज्ञान के पास अभी कोई जवाब नहीं | बेहतर होगा आप हनुमान चालीसा को याद रखें | न जाने कब आपको किसी अनपार्टिकल का सामना करना पद जाए |
कोई आपको देख रहा है
यकीन मानिये ये लेख लिखते समय मैंने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा क्योंकि मुझे मालूम है मेरे पीछे से वो मुझे देख रहा है की मैं उसके बारे में ही कुछ लिख रही हूँ |