कहते हैं इस धरती पर
अगर कुछ सत्य है तो वो है मृत्यु बाकी सब मिथ्या है | इंसान को कुछ मिले न मिले
मृत्यु ज़रूर मिलनी है | फिर भी हम जीवन भर तमाम चोचले करते हैं क्यूंकि यह कर्म
भूमि है और वजह कुछ भी हो जीवन चक्र और कर्म चक्र हमेशा चलायमान रहता है |
मोक्ष प्राप्ति का विशेष स्थल
मरने के बाद क्या
होता है या अंत के उन क्षणों में कैसा महसूस होता है इसका जवाब तो किसी के पास
नहीं लेकिन प्रत्येक धर्म में जीवन उपरांत मोक्ष प्राप्ति के तमाम साधन दिए गये है
| हिन्दू धर्म में काशी में मोक्ष प्राप्ति का विशेष स्थान है | आज मैं आपको काशी
नगरी के ऐसे ही एक घाट के विषय में बताती हूँ| यहां स्थित मणिकर्णिका घाट के विषय
में कहा जाता है कि यहां जलाया गया शव सीधे मोक्ष को प्राप्त होता है, उसकी आत्मा को जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है।
२४ घंटे होता है दाह संस्कार
गंगा के तट पर
मणिकर्णिका घाट भारत का एक मात्र ऐसा घाट है जहाँ दिन रात यानि 24 घंटे शवों का दाह संस्कार किया जाता है| हिंदू रीति रिवाजों के मुताबिक सिर्फ दिन में ही दाह
संस्कार किया जाता है| इस मामले में मणिकर्णिका घाट अलग है क्योंकि यहाँ न सिर्फ दिन में बल्कि रात
में भी शव जलाए जाते हैं| यहाँ शवों को भी अपनी बारी का इंतज़ार करना पड़ता है| दिन में करीब ढाई-तीन सौ शव आते हैं और जितने शव
जल रहे होते हैं, उससे ज्यादा शव दाह संस्कार की कतार में रहते है|
भगवान विष्णु ने किया सृजन
पांच तीर्थों के बीच
में पड़ने वाला मणिकर्णिका घाट सृजन और विध्वंस का प्रतीक है। यहां एक तरफ है पवित्र मणिकर्णिका कुंड। कहते
हैं भगवान विष्णु ने सृष्टि का सृजन
करते समय इसे खोदा था। साथ ही मिलती है श्मशान की राख मिश्रित बलुई मिट्टी यानी जहां जीवन ठहर जाता है। हिंदुओं की मान्यता के अनुसार मणिकर्णिका कुंड धरती पर गंगा के उद्धभव काल से है।
यही नहीं, इसका छोर हिमालय में निकलता है।
कई कथाएं हैं प्रचलित
इस घाट से जुड़ी दो
कथाएं हैं। एक के अनुसार भगवान विष्णु ने शिव की तपस्या करते हुए
अपने सुदर्शन चक्र से यहां एक कुण्ड खोदा था। उसमें तपस्या के समय
आया हुआ उनका स्वेद भर गया। जब शिव वहां प्रसन्न हो कर आये तब विष्णु के कान की मणिकर्णिका उस कुंड में गिर गई थी।
खो गयी थी पार्वती की कर्णिका
दूसरी कथा के अनुसार
भगवाण शिव को अपने भक्तों से छुट्टी ही नही मिल पाती थी। देवी पार्वती इससे परेशान हुईं और शिवजी को रोके रखने हेतु अपने कान की
मणिकर्णिका वहीं छुपा दी और शिवजी से
उसे ढूंढने को कहा। शिवजी उसे ढूंढ नही पाये और आज तक जिसकी भी अन्त्येष्टि उस घाट पर की जाती है, वे उससे पूछते हैं कि क्या उसने देखी है? प्राचीन ग्रन्थों के
अनुसार मणिकर्णिका घाट का स्वामी वही चाण्डाल था, जिसने सत्यवादी राजा हरिशचंद्र को खरीदा था। उसने राजा को अपना दास बना कर उस घाट पर
अन्त्येष्टि करने आने वाले लोगों से कर वसूलने का काम दे दिया था।
शक्ति पीठ भी है यह स्थान
एक कथा के अनुसार जब
शिव जी सती के पार्थिव शरीर को ले जा रहे थे तो जहाँ जहाँ उनके शरीर के अंग गिरे
वहां वहां शक्तिपीठ बन गयी |
किवंदती के अनुसार सती के कान की कुंडल का मणि
इस घाट पर गिरा जिससे की यह भी एक शक्ति पीठ के रूप में स्थापित हो गया और इसका
नाम मणिकर्णिका पड़ गया |
यह एक ऐसा स्थल है
जहां मृत्यु भी प्रयत्न है |
बड़ी विचित्रता है यह भी |
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