जब बात हो गर्मी की और कोई आम की चर्चा न करे तो मालूम होता है कि कुछ अधूरा
रह गया | और बनारस के इस प्रकरण में बनारसी आम के बारे में ज़िक्र करना तो बेहद
जरूरी है | बनारस में आम की जो नस्ल मशहूर है या यूँ कहे बनारसी आम जो पूरी दुनिया
में बनारस से जाता है उसका नाम है लंगड़ा आम| आम तो ये लंगड़ा है लेकिन इसकी मिठास
आपको स्पीच्लेस कर देगी |
क्या है लंगड़े आम की कहानी
लगभग ढाई सौ वर्ष पहले की घटना है। कहते हैं, बनारस के एक छोटे-से शिव-मंदिर में, जिसमें लगभग एक एकड़
जमीन थी, जो चाहर दीवारियों
से घिरी हुई थी, एक साधु आया और मंदिर के पुजारी से वहां कुछ दिन
ठहरने की आज्ञा माँगी। पुजारी ने कहा, ``मंदिर परिसर में कई कक्ष हैं, किसी में भी ठहर जाएँ। साधु ने एक कमरे में धूनी रमा दी। साधु के पास
आम के दो छोटे-छोटे पौधे थे, जो उसने मंदिर के पीछे अपने हाथों से रोप दिये। सुबह उठते ही वह सर्वप्रथम उनको
पानी दिया करता|
पूरा फल किसी को न देना
उस साधु ने चार साल तक उन पेड़ों की देख रेख की और जब उनमे मंजरी आ गयी तो वह
मन्दिर के पंडित से बोला``मेरा काम पूरा हो गया। कल सुबह ही बनारस छोड़ दूंगा। तुम इन पौधों की देखरेख करना
और इनमें फल लगें, तो उन्हें कई भागों में
काटकर भगवान शंकर पर चढ़ा देना, फिर प्रसाद के रूप में भक्तों में बांट देना, लेकिन भूलकर भी समूचा आम किसी को मत देना। किसी को न तो वृक्ष की कलम लगाने देना और न ही गुठली देना।
गुठलियों को जला डालना, वरना लोग उसे रोपकर पौधे बना लेंगे।“ इतना कहकर वह वहां से चला गया|
कशी नरेश ने खुद आकर माँगा यह आम
पंडित जी ने भी उनकी वैसी ही सेवा की | कुछ समय बाद पेड़ों में फल आ गये | जिन
लोगों ने प्रसाद के रूप में फल को खाया वे पुजारी से अनुरोध करने लगे की फल की
गुठली या कलम देदे ताकि इसके और पेड़ लग सके | पर पुजारी ने मना कर दिया | इस बारे
में जब काशी नरेश ने सुना तो वे खुद ही आ पहुंचे | मन्दिर में दर्शन के बाद उन्होंने पेड़ों को करीब
से देखा | फिर उन्होंने पुजारी से कलमें मांगी | पुजारी काशी नरेश को कैसे मना कर सकते थे ; उन्होंने कहा की वे
भगवान शिव से आज्ञा लेकर उन्हें बताएँगे|
शिव जी का प्रसाद है यह
इसी रात भगवान शंकर ने स्वप्न दिया, ``काशी नरेश के अनुरोध को मेरी आज्ञा मानकर वृक्षों में कलम लगवाने दें।
जितनी भी कलमें वह चाहें, लगवा लें। तुम इसमें रुकावट मत
डालना। वे काशीराज हैं और एक प्रकार से इस नगर में हमारे प्रतिनिधि स्वरूप हैं। दूसरे
दिन प्रातकाल की पूजा समाप्त कर प्रसाद रूप में आम के टोकरे लेकर पुजारी काशी नरेश
के पास पहुँचा। राजा ने प्रसाद को तत्काल ग्रहण किया ।
रामनगर में है ढेरों बागीचे
काशी नरेश के प्रधान-माली ने जाकर आम के वृक्षों
में कई कलमें लगायीं, जिनमें बारिश के बाद काफी जड़ें निकली हुई पायी गयीं।
कलमों को काटकर महाराज के पास लाया गया और उनके आदेश पर उन्हें महल के परिसर में
रोप दिया गया। कुछ ही वर्षों में वे वृक्ष बनकर फल देने लगे। कलम द्वारा अनेक
वृक्ष पैदा किये गये। महल के बाहर उनका एक छोटा-सा बाग बनवा दिया गया। बाद में
इनसे अन्य वृक्ष उत्पन्न हुए और इस तरह रामनगर में लंगड़े आम के अनेकानेक
बड़े-बड़े बाग बन गये।
बीएचयू में हर जगह दिखेगे लंगड़े आम के
पेड़
आज भी जिन्हें बनारस के आसपास या शहर के खुले
स्थानों में जाने का मौका मिला होगा, उन्हें लंगड़े आम के
वृक्षों और बागों की भरमार नजर आयी होगी। हिन्दू विश्वविद्यालय के विस्तृत विशाल प्रांगण
में लंगड़े आम के सैकड़ों पेड़ हैं।
इसे लंगड़ा क्यों कहते हैं
साधु द्वारा लगाये हुए पौधों की समुचित देखरेख जिस पुजारी ने की थी, वह लंगड़ा था और इसीलिए इन वृक्षों से पैदा हुए
आम का नाम लंगड़ा पड़ गया और आज तक इस जाति के आम सारे भारत में इसी नाम से प्रसिद्ध हैं।
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