हमारे देश में पहली बार हुआ है एक ऐसा केस जिसमे पैदा
होने वाले बच्चे के शरीर पर खाल यानि की स्किन है ही नहीं | स्किन की जगह पर है एक
मोटी सफ़ेद परत होती है जिसपर गहरी लाल दरारें पड़ी होती हैं | इस बीमारी को
हर्लेक़ुइन इच्थोय्सिस कहते हैं | इसमें शरीर के अंग विकसित नहीं हो पाते हैं |
आँखे नाक कान और अन्य अंगों जैसे गुप्तांगों की जगह केवल लाल चक्कत्ते होते हैं |
भारत में पहला केस है
भारत में यह पहली बार हुआ है की ऐसी बीमारी के साथ
किसी बच्चे का जन्म हुआ है | यह एक रेयर स्किन प्रॉब्लम है जिसका कोई इलाज नहीं है
| बस डॉक्टर इसी कोशिश में हैं की वह जितने समय तक हो सके बच्चे को जिन्दा रख सके
| यह मामला नागपुर के लता मंगेशकर अस्पताल का है | बच्चा एक किसान परिवार का है|
उसका वजन १ |२
किलोग्राम है |
स्किन प्रोब्लम है हर्लेक़ुइन
इच्थोय्सिस
हर्लेक़ुइन इच्थ्योसिस नामक बीमारी में शरीर पर हीरे
के समान शल्क पड़ जाते हैं जैसे की मछली की खाल पर होते हैं | इस बीमारी का पता माँ
के गर्भ में पल रहे भ्रूण की त्वचा बाइयोप्सी से चल सकता है | आजकल प्रचलित 3d
अल्ट्रासाउंड और सोनोग्राफी टेस्ट से इस बीमारी का पता पहले ही चल जाता है |
अल्ट्रासाउंड में आँख कान नाक की ख़राब बनावट ; भिंची हुई मुट्ठियाँ या चेहरे की
बिगड़ी हुई आकृति सभी कुछ मालूम हो जाता है| प्रोटीन abca१२ में जीन परिवर्तन के
कारण होता है |
तीन लाख में एक बच्चा होता है
प्रभावित
१७५० से इस बीमारी के बारे में जानकारी मिली | आमतौर
पर ३००००० में एक बच्चे में यह बीमारी पाई जाती है | त्वचा को नियमित रूप से
मोश्चुरयिज़ करने की ज़रूरत होती है क्यूंकि त्वचा पर से पपड़ी निकल कर गिरती रहती है
जिससे खाल के भीतरी हिस्से सामने आ जाते हैं जो हानिकारक है| इस बीमारी के दुनिया में अब तक केवल दर्जन भर मामले
ही सामने आए हैं | भारत में इससे पहले भी
ऐसा ही एक मामला सामने आया था 2014 में | छतीसगढ के बस्तर में | लेकिन मेडिकली चैक करने पर ये केस कंफर्म नहीं हो पाया
था |
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