औरत है तो भैया कभी
भी किसी भी बात के लिए फटकार दो ; दबा दो खत्म करदो|हमेशा से भारतीय समाज में ऐसा
होता आया है | और अगर वो रोये तो त्रिया चरीत्र दिखा रही है | ताने डे देकर जान ले
लो | बेशक समाज बहुत आगे बढ़ गया है | औरते अब जुल्म बर्दाश्त नही करतीं लेकिन ऐसा
अमूमन बड़े शहरों में होता है और हमारे देश में बड़े शहर चंद है ; उँगलियों पर गिन
लो | अभी भी देश की आधी आबादी कमजोर है और औरतों पर अत्यचार शायद कागज़ी तौर पर कम
हुए हैं असल जीवन में नहीं |
पीरियड्स में दर्द होना सामान्य नही
लडकी है तो तेज़ नही
बोल सकती जोर से नहीं हस सकती प्यार नहीं कर सकती और सबसे मज़ेदार बात तो ये की
माहवारी में आराम नहीं कर सकती| पूछिए क्यों? अरे जनाब हर महीने ही तो होता है ये
सब | कुछ नया तो नहीं |दुनिया में सबको होता है | क्या हर वक्त इसी का रोना रोटी
रहेगी | यह सब कुछ नहीं होता उठ कर काम करो | ये बहाने नहीं चलेंगे| दुनिया में बस
तुमको ही पीरियड्स होते हैं क्या? ये की बड़ी बात नहीं वगैरह वगैरह|
समाज को यह आम लगता है
और ये बाते ये ताने
तो हर लडकी सुनती है कभी माँ से कभी बॉय फ्रेंड से कभी पति से कभी सास से और कभी
उस दोस्त से जिसे शायद पीरियड्स में दर्द नही होता | बॉयफ्रेंड और पति तो कभी ये
बातें नही समझ सकते क्योंकि वो कभी इस दौर से गुजरेंगे नहीं | रही बात माँ और सास
की तो वो वैसा ही करेंगी जैसा उन्होंने अपने बचपन से होते हुए देखा है |
पीएमएस है एक मुश्किल दौर
पीरियड्स में होने
वाली तकलीफ़ें यानि पीएमएस या प्री मेंसट्रूअल सिंड्रोम पर बहस जारी है क्योकिं
समाज के एक बड़े हिस्से का यह मानना यह की ऐसा वैज्ञानिक तौर पर नहीं होता यह सिर्फ
हमारी सोच है |
लेबर जैसा पेन भी हो सकता है
डॉक्टर्स बताते हैं
की १०० में से एक लड़की को पीरियड्स के दौरान लेबर जैसा दर्द होता है | और कई केसेस
ऐसे भी होते हैं जिनमे पीरियड्स कब आते है और चले जाते हैं मालूम नही चलता | आपको
एक किस्सा बताती हूँ जहाँ पीरियड्स के दौरान होने वाली छूतछात और रोक टोक से अवसाद
ग्रस्त होकर एक १४ साल की लडकी ने आत्महत्या करली | यह एक पहला केस नही है |
पीरियड्स के दिनों में उदासी अपराधबोध और डॉ का कारण डॉक्टरों के अनुसार शरीर में
होने वाले हार्मोनल बदलाव हैं | कुछेक आंकड़ों के माध्यम से बताना चाहती हूँ-
·
unicef ने २०१५ में एक
सर्वे किया जिसमे यह मालूम हुआ की २८लाख लडकियाँ स्कूल में टॉयलेट न होने के कारण
पीरियड्स के दौरान स्कूल जाना छोड़ देती हैं |
·
और साथ ही घर में होने वाले
तमाम अंधविश्वासों के कारण 19 लाख लडकियाँ पीरियड्स शुरू होते ही हमेशा के लिए
स्कूल जाना छोड़ देती हैं |
·
२०१० के एक सर्वे के
मुताबिक १०० में से केवल १२ लडकियाँ सैनिटरी पैड्स का प्रयोग करती हैं |जहाँ देश
में पीरियड्स होने वाली महिलाओं की संख्या ३५ करोड़ से अधिक है ऐसे में १२ प्रतिशत
औरतों का ही पैड्स इस्तेमाल करना या कर पाना महिला स्वाथ्य के लिए खतरे की घंटी है
|
मुझे याद है मेरे घर
में भी बड़ी औरतें एक ही कपड़ा धो धो कर सालों इस्तेमाल करती थीं| टाइम्स ऑफ़ इंडिया
की एक रिपोर्ट में जिसमे एम्स ने के सर्वे किया था उसमे यह खुलासा हुआ की महिलाओं
में आत्महत्या के कई कारणों में एक कारण माहवारी के दौरान अवसाद का होना भी है |
ये महज एक कोइन्सिडेन्स नही हो सकता |
सोच को साफ़ रखना है जरूरी
हम सब जानते हैं कि
यह एक स्वाभाविक समस्या है लेकिन अपने दिमाग की गंदगी को साफ़ करके हम कई महिआलों
को एक बेहतर स्वास्थ्य और खुशनुमा कल डे सकते हैं | करना सिर्फ इतना है की अपने
इर्द गिर्द फैली अन्धविश्वास की गंध को साफ करना है |
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