Monday, 20 June 2016

पापा तुम मेरी माँ भी हो और मान भी



एकल अभिभावक होना अपनेआप में एक बड़ी चुनौती है और ये चुनौती और बड़ी साबित हो सकती है अगर अभिभावक एक पुरुष है तो | यानी की पापा लोगों के लिए सिंगल पैरेंटहुड थोडा मेहेंगा साबित हो सकता है | मसलन एक महिला के लिए घर और बाहर की ज़िम्मेदारी निभा पाना कुछ हद तक आसान होता है क्योंकि उसको अमूमन यह सब करने की आदत होती है | हमारे समाज में अब अगर मोटे तौर पर देखा जाए तो महिलाओं की अधि से अधिक आबादी घर और बाहर दोनों के काम कर पाती है | वहीँ दूसरी ओर पुरुषों को हमेशा से ही केवल बाहरी कामों के लिए दक्ष बनाने की कवायद चलती है | अब ऐसे में इश्वर न करे महिला की मृत्यु हो जाए या किन्ही कारणोंवश उसे पुरुष से अलग रहना हो और बच्चों की ज़िम्मेदारी पुरुष पर हो तो यह काफी चुनौतीपूर्ण साबित होता है |
हालाँकि सिंगल फादर होना और बच्चे को पलना एक मुश्किल काम है लेकिन भारतीय मर्द इसमें पीछे नहीं है | बच्चों की छोटी से छोटी ज़रूरतों को पूरा करने से लेकर घर की एक एक चीज़ का ख्याल रखना; यह मर्द इनमे कहीं से कम नहीं | लेकिन अगर बात बच्चा गोद लेने की हो तो मामला कुछ मुश्किल हो जाता है | भारत में गोद लेने की प्रक्रिया सिंगल पेरेंट्स के लिए कुछ जटिल है और सिंगल फादर के लिए तो बहुत मुश्किल |
सिंगल फादर केवल एक मेल बच्चे यानि की लडके को गोद ले सकता है | इस बात का विवरण भारतीय हिन्दू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट १९५६ के तहत दिया गया है | वह किसी लड़की को गोद नहीं ले सकता | टीवी एक्टर राजीव खंडेलवाल ने एकबार लडकी गोद लेने की याचिका दायर की थी | लेकिन उसे इस बात पर ख़ारिज कर दिया गया की वह अबतक सिंगल हैं | हालाँकि अभिनेता राहुल बोस ने अंडमान निकोबार की एक चैरिटी से ६ बच्चों को गोद लिया लेकिन वे सभी लडके हैं |
आंकड़े बताते हैं की देश की कई अदालतों में एकल अभिभावक और विशेषकर सिंगल फादर के बच्चों को गोद लेने की कई याचिकाएं लंबित पड़ी हैं | शायद ही आने वाले समय में इनपर कोई सुनवाई हो |
इस विषय पर कोंसेलेर विभिन्न तर्क देते हैं| उनका मानना है की सिंगल फादर होना अधिक मुश्किल इसलिए है क्योंकि पिता अक्सर गुस्सैल स्वाभाव के होते हैं और कई बार अधीर भी | उन्हें कम मालूम होता है की बच्चों को कब डांटना है और कब प्यार करना है | उनके लिए बच्चे को माँ और बाप दोनों का प्यार देना थोडा अधिक मुश्किल होता है |
इसके विपरीत कुछ ऐसे पिता भी है जो बच्चों को माँ के न होते हुए बखूबी पाल रहे है और वे इन बातों को एक सिरे से नकार देते हैं | हाल ही में आदमियों के सिंगल पैरेंट होने के अनुपात में इजाफा आया है | इससे एक बात तो तय है की पुरुषों के अंदर महिलाओं के काम करने में अब कोई शर्म नहीं रही | यह एक सकारत्मक सोच है जो इस बात की ओर इशारा करती है की मर्द अब जानते हैं की हर काम हर कोई कर सकता है | काम जेंडर बायस्ड नहीं | वह महिला और पुरुष दोनों के लिए एक समान है |

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