लाल बहादुर शास्त्री जय
जवान जय किसान का नारा दे गये | और यह बात एकदम यथार्थ है की यदि हम जीवन में हर
रोज एक सुबह देख पाते हैं और हर शाम को अपनी थाली में खाना खा पाते हैं तो यकीनन
हम अपने देश के जवानों और किसानों के कर्जदार हैं | पर बड़े अफ़सोस की बात है की यह
दोनों ही एक अनिश्चित भविष्य की भेंट चढ़ जाते हैं | एक ओर जहाँ सैनिकों को बेहतर
सुविधाओं का लाभ नहीं मिलता वहीँ किसान की हालत और ही ख़राब है |
जो किसान दिन भर हफ्ते भर
महीने भर साल भर काम करके हमारी थाली में दो रोटी रखने का इंतजाम करता है उसी
किसान का परिवार कितनी विषम परिस्थितियों में जीवन यापन करता है इसका हमे कोई
अंदाज़ा ही नहीं | भारत में हम हर रोज़ अख़बार में किसी ने किसी पन्ने पर क़र्ज़ और
आर्थिक तंगी के कारण किसी किसान की आत्महत्या की खबर पढ़ते हैं | पिछले साल जन्तर
मन्तर पर मुख्यमंत्री के सामने फांसी लगा लेने के बाद किसान को कुछ रोज़ खबरों में
खूब उछाला गया पर फिर मामला ढाक के तीन पात पर वापस आ गया |
एक किसान की आत्महत्या के
कारण केवल वो किसान ही नहीं मरता | साथ मरती है उसके घरवालों की उम्मीद | उसके
बच्चों की ख्वाहिशें | उसके परिवार की ज़रूरतें और न जाने क्या क्या | देश का
अन्नदाता विषम परिस्थितियों में अन्न के के लिए तरस रहा है| देश को आजाद हुए सत्तर
साल होने वाले हैं मगर सरकारें न सिंचाई की व्यवस्था कर सकीं और न
पर्याप्त भंडार-गृहों की।
हर साल हजारों करोड़ों का राशन सड़ जाता है | कमजोर मानसून और भूजल के
घटते स्तर के कारण खेती, बिजली उत्पादन और पेयजल के लिए भयानक संकट
उत्पन्न हो गया है। ग्रामीण क्षेत्रों के कुछ परिवार ऐसे हैं जिन्हें आधा
किलोमीटर से अधिक दूर से पानी लाना पड़ता है। बड़े शहरों में दूरदराज के बांधों
से पानी का शुद्धिकरण कर उसकी आपूर्ति की जाती है, लेकिन गरीब शहरी आबादी
में इसकी आपूर्ति न के बराबर है।
इसे किसी भी नाम से पुकारा जाए लेकिन यह त्रासदी सदी की
सबसे बड़ी त्रासदी है जहां देश को अन्न देने वाला अन्नदाता अपने घरों में भूखा सो
रहा है और हम यहाँ भोजन की बर्बादी करने से बाज नहीं आ रहे | आपकी जानकारी के लिए
बता दूं की भारत में १९९० के बाद ऐसी स्थिति पैदा हुई है जिसमे हर वर्ष करीब १००००
किसानों की आत्महत्या करने की रिपोर्ट दर्ज है |
सरकार द्वारा बनायीं गयी तमाम नीतियों के बावजूद देश में
अमीर और गरीब के बीच की खायी गहरी होती जा रही है | कृषि प्रधान देश में कृषि
कार्य एक निचले दर्जे का निकृष्ट कार्य बनकर रह गया है | बुंदेलखंड में बीते 6 सालों में 3223 किसान आत्महत्या कर
चुके हैं. जबकि 62 लाख से ज़्यादा लोग
पलायन कर अपने पीछे छप्पर और मिट्टी वाले कच्चे मकान छोड़ गए हैं|
देश अप्रतिम गति से उन्नति कर रहा है लेकिन अन्नदाता इस दौड़ में कहीं बहुत
पीछे छूट चुका है | हर रोज़ मौसम की और सामाजिक व्यवस्था की मार झेलते झेलते वो थक
गया है | हर रोज़ उसके सपने टूट रहे है | अपने देश के भविष्य को बचाने के लिए हमे
किसान के हितों को नज़रंदाज़ नहीं करना चाहिए अन्यथा परिणाम भयंकर होंगे |
उनके बच्चों से बचपन छीनने का हमे कोई अधिकार नहीं | प्रार्थना यही करें की
हमारी थाली में भोजन देने वाले किसान के बच्चे किसी रात को भूखे न सोयें|
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