आइये आज में आपको
अपना एक किस्सा सुनती हूँ | इधर उधर की बातें तो होती ही रहती हैं आज सोचा आपसे
अपने बारे में कुछ बताया जाये | बीते कुछ वर्षों में व्यस्तता और गलत समय प्रबन्धन
के कारण मैंने जीवन को एक रूटीन सा बना लिया था | असमय सोना देर से जागना फिर कुछ
छिटुर पुटुर काम करना और ऑफिस भाग जाना | दिन भर वहां काम काज वर्क प्रेशर और फिर
वापस आकर घर में वही घिसा पिटा ढर्रा | बड़े लम्बे अरसे से इस तरह से रहते रहते
शरीर में बल पड़ गये थे | लम्बा अरसा कुछ ऐसा था की जब स्कूल पढने जाती थी तब खुद
को जिसे क्वालिटी ऑफ़ लाइफ कहे हैं उस रवैये में ढाला हुआ था | पर कॉलेज जाकर मस्ती
सवार हो गयी और स्वस्थ जीवन के नियम सारे ताक पर रख दिए | फिर शादी हो गयी और
जितनी कसर बाकी थी काहीलियत में वो भी पूरी हो गयी |
जब छोटी थी तो पापा
सिखाते थे ; जो रात को जल्दी सोये और सुबह को जल्दी जागे उस बच्चे से दूर दूर
दुनिया का दुःख भागे | पर जवानी की मस्ती में ये सब कहाँ याद आता है | अब जब शरीर
बेइन्तेहाई तौर पर फैलने लगा और जब देखो तब कुछ न कुछ बीमारी लगने लगी तो ऐसा लगा
की अब मशीनी जिंदगी को बदल लेना चाहिए इससे पहले की बहुत देर हो जाए | आपको मालूम
होगा की मेरी उम्र अभी बहुत अधिक नहीं है लेकिन मेरे जैसे इस उम्र के कई लोगों ने
इसी जीवन शैली के कारण शरीर की तबाही कर ली है |
तो फिर हुआ यूँ की
मैंने ठान लिया की अब सुबह सैर पर जाउंगी | रात को मोबाइल में ५ बजे का अलार्म
लगाया लेकिन जब सुबह अलार्म बजा तो काहीलियत ने कान में बोला “जाने दो तुमसे न हो
पाएगा”| मैं फिर चादर ओढ़ कर सो गयी | दस मिनट बाद घर में चिड़ियों ने चेह्कना शुरू
किया तो मैंने हिम्मत बटोरी और उठ कर बाहर
देखा ठंडी हवा चल रही थी और फिर हाँ और न की एक ज़ोरदार लडाई के बीच हाँ की जीत हुई
| मैंने उठाया अपना मोबाइल और रेडियो ट्यून करके चल दी टहलने | देखा तो पास के ही
एक पार्क में कुछ नही तो १५० लोग मौजूद थे | सभी कसरत करने योग करने और दौड़ने
टहलने में व्यस्त थे | किसी को किसी से कोई मतलब नही | हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
सभी धर्मों के लोग वहां अपने बोरिंग लाइफ को क्वालिटी लाइफ बनाने में लगे थे | ऐसा
लगा मानो हम ही इतने लापरवाह बैठे थे | सैर एक अच्छा अनुभव रहा और बाकी का दिन
मस्त कट रहा है | आलस से दूर बहुत ही सकारात्मक |
हमारी सेहत एक बैंक खाते की तरह होती है| जो हम इसमें डालते हैं, हमें वही वापस मिलता है|
इसलिए शरीर और मस्तिष्क को सेहतमंद रखने के लिए सही चुनाव
और निवेश बहुत जरूरी है| हमारे मन और दिमाग में जो
होता है उसका शारीरिक असर भी होता है| इसका उलटा भी सच है| हमें इसे ऐसे समझ सकते हैं कि शरीर में कुछ रसायनों का स्राव होता है जिनसे शरीर और मन उत्तेजित होते हैं| इसका असर दो तरह से होता है| नकारात्मक भावनाएं जैसे ज़िद,
लालच, क्रोध, शक आदि से तनाव बढ़ेगा और शरीर को नुकसान होगा| इनके असर को कम करने के लिए सकारात्मक भावनाओं का संचार करना चाहिए| और ध्यान करना
चाहिए ताकि शरीर खुद को स्वस्थ करे| दया दिखाना, सहानुभूति रखना, किसी का धन्यवादी होना और हमेशा सकारात्मक सोचना मुफ्त में अच्छी सेहत पाने के तरीके हैं|
हाल ही में हुए शोध
में पता चला है कि अवसाद के मरीजों
के लिए तो पीएआई यानी पॉजिटिव एक्टिविट इंटरवेंशन काफी प्रभावशाली इलाज हो सकता है| अमेरिका की साइंस
पत्रिका में 1984 में एक अध्ययन छपा था| यह अध्ययन ऐसे मरीजों पर किया गया जिनकी सर्जरी हुई थी| 23 मरीजों को ऐसे कमरे दिए गये जिनकी खिड़की से प्राकृतिक सौंदर्य नजर आता था| दूसरे 23 मरीजों की खिड़की दीवार के सामने खुलती थी|
आपने बेशक नाईट लाइफ
को एन्जॉय किया होगा पर थोडा वक्त निकालिए मोर्निंग लाइफ के लिए | प्रकृति ने हमे
हर सवाल का जवाब दिया है | हमें ज़रूरत है तो बस उसी प्रकृति में जाकर अपने जवाब
ढूंढने की |तो जनाब इससे पहले की देर हो जाए मेरी तरह आप भी सेहत को लेकर और जीवन
में गुणवत्ता के इंडेक्स को उच्च स्थान पर ले जाने के लिए सजग हो जाइये | स्वस्थ
रहिये मस्त रहिये और जबर्दस्त रहिये |
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