Tuesday, 31 May 2016

हिम्मत-ए-मर्दा तो मदद-ए-खुदा




एक मुहावरा है कि कौन कहता है आसमान में सुराख़ हो नही सकता ; एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों | आज मैं आपसे ये सब इसलिए बता रही हूँ क्यूंकि मैंने न जाने कितनी बार यह ध्यान दिया है है की इंसान कई बार मेहनत करते करते ठीक उसी जगह जाकर रुक जाता है जहाँ पर अगला कदम उसकी मंजिल की ओर है और फिर वह यह कसीदे काढता है की मेहनत से कुछ नहीं होता सब लकीरों का फेर है | पर जनाब गर लकीरों का फेर होता तो दुनिया में बहुत कुछ वैसा न होता जैसा दिखता है | किसी भी सफलता के पीछे मेहनत लगन का किस्मत से कहीं जादा हाथ होता है | उदाहरण के लिए आज आपको बताती हूँ एवेरस्ट के शिखर पर चढने वाले प्रथम पुरुष और पहले भारतीय नागरिक तेनजिंग नोर्गे शेरपा के बारे में|
सादा जीवन था शेरपा का :-
शेरपा परिवार में पैदा हुए नोर्गे को नोर्के भी कहते हैं |इनका वास्तविक नाम था न्यांगल वांगरी जिसका अभिप्राय होता है धर्म के अनुयायी| इनका जन्म १९१४ में एक बौद्ध परिवार में हुआ था | इनके जन्म की तिथि इनके माँ बाप को याद नहीं पर फसल की बुवाई और मौसम का अनुमान लगाकर वे इसे मई के अंत में बताते हैं | २९ मई को एवेरस्ट विजय के बाद तेनजिंग ने अपनी जन्म तिथि २९ मई रख ली | कई वर्षों तक भिक्षुओं की तरह रहने के बाद यह नौकरी की तलाश में दार्जीलिंग आ गये | वे भी स्वयम बौद्ध धर्म के अनुयायी थे और १९३३ में उन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त हुए | उन्हें जानवरों से बेहद लगाव था | वे १३ भाई बहनों में ११वे नंबर पर थे जिनमे से कई बहुत जल्दी ही मर गये थे | इनके पिता एक चरवाहे थे जो १९४९ में खत्म हो गये थे लेकिन माँ जीवित रही इनकी विजय देखने को |
भागकर आ गये भारत :-
बचपन मे ही तेन्जिंग एवरेस्ट के दक्षिणी क्षेत्र में स्थित अपने गाँव, जहां शेरपाओं (पर्वतारोहण में निपुण नेपाली लोग, आमतौर पर कुली) का निवास था, से भागकर भारत के पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग में बस गए। 1935 में वे एक कुली के रूप में सर एरिक शिपटन के प्रारम्भिक एवरेस्ट सर्वेक्षण अभियान में शामिल हुए। अगले कुछ वर्षों में उन्होने अन्य किसी भी पर्वतारोही के मुक़ाबले एवरेस्ट के सर्वाधिक अभियानों में हिस्सा लिया। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वह कुलियों के संयोजक अथवा सरदार बन गए। और इस हैसियत से वह कई अभियानों पर साथ गए। 1952 में स्वीस पर्वतारोहियों ने दक्षिणी मार्ग से एवरेस्ट पर चढ़ने के दो प्रयास किए और दोनों अभियानों में तेन्जिंग सरदार के रूप में उनके साथ थे।

पहली उपलब्धी नहीं थी यह :-
यह उपलब्धी उन्हें सातवीं बार में हासिल हुई | इससे पहले उन्होंने छः प्रयास किये जो विफल तो नहीं परन्तु सफल भी नही कहे जा सकते | लेकिन उन्होंने हिम्मत न हारी | 1953 में वे सरदार के रूप में ब्रिटिश एवरेस्ट के अभियान पर गए और हिलेरी के साथ उन्होने दूसरा शिखर युगल बनाया। दक्षिण-पूर्वी पर्वत क्षेत्र में 8,504 मीटर की ऊंचाई पर स्थित अपने तम्बू से निकलकर वह 29 मई को दिन के 11.30 बजे शिखर पर पहुंचे। उन्होने वहाँ फोटो खींचते और मिंट केक खाते हुए 15 मिनट बिताए और एक श्रद्धालु बौद्ध की तरह चढ़ावे के रूप में प्रसाद अर्पित किया। इस उपलब्धि के बाद उन्हें कई नेपालियों और भर्तियों द्वारा अनश्रुत नायक माना जाता है।
पद्म भूषण से किये गये सम्मानित :-
तेनजिंग की इस यात्रा में एडमंड हिलारी भी उनके साथ थे | इसके बाद उनको नेपाल सरकार की ओर सन् १९५३ में सम्मान (सुप्रदीप्त मान्यवर नेपाल तारा) प्रदान किया और उनके एवरेस्ट आरोहण के तुरंत बाद रानी बनी एलिज़ाबेथ ने जार्ज मेडल दिया जो किसी भी विदेशी को दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान था। सन् १९५९ ने भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया। एक स्विस कंपनी ने उनके नाम से शेरपा तेनसिंग लोशन और लिप क्रीम बेचा। न्यूज़ीलैंड की एक कार का नाम शेरपा रखा गया। सन् २००८ में नेपाल के लुकला एयरपोर्ट का नाम बदल कर तेनज़िंग-हिलेरी एयरपोर्ट कर दिया गया।
यूँ ही कुछ जीवन की उंच नीच देखते हुए शेरपा अपने जीवन के और इस विश्व के उच्चतम शिखर पर पहुँच गये | ठीक ही कहते है कि “ कहिये तो आस्मां को ज़मीं पर उतार लाये ; मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिये |”


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