कंपकपाते हाथों पर
सैकड़ों झुर्रियां, सफ़ेद बाल , टूटते हिलते पीले दांत, आँखों के किनारे काले घेरे, माथे पर चिंता की रेखाएं और ओझल होते सपने |
लंगडाती डगमगाती एक बूढ़ी औरत चारों ओर देखती हुई आगे बढ़ रही थी | उसकी धुंधली
आँखों पर चश्मा भी न था | न जाने क्या देख रही थी उन दीवारों में उन खिड़कियों में
उन दरारों में | ध्यान न होने के कारण वो लड़खड़ा गयी और उसका पैर आंगन की पतली सी
नाली में जाते जाते बचा | मैंने उसको सम्भाला ,” अरे दादी! आराम से चलो | गिर जाओगी तो चोट लग
जाएगी |” उसने सहमी हुई नजरों से मुझे देखा और बोली आज ही आई हूँ न बेटे ज़रा वक्त
लगेगा इस घर को समझने में | मैंने उसको मोढ़े पर बैठाया और उसका अता पता पूछा| उसने
बताया की उसका नाम सगुना है और वो बलिया की रहने वाली है | पति की मौत हुई ५ साल
बीत गये और बच्चों ने अपनी अपनी व्यस्तताओं से समय न निकाल पाने के कारण उसे
सेवार्थ वृद्धाश्रम भेज दिया | लड़का अभी अभी गाड़ी से छोड़ कर गया | आपबीती तो सगुना
दादी की थी पर दिल मेरा टूट चूका था और गला रुंध गया था | उस वृद्धा-आश्रम में ऐसे
कई किस्से रोज़ ही कहे और सुने जाते थे | मैं सोचती हूँ की इन पीढ़ियों को कौन सा
दीमक लग गया है | जो माँ बाप तुमको हाथ पकड क्र चलना सिखाते हैं तुम बुढ़ापे में
उन्ही का हाथ थामने से इंकार कर देते हो ?
मैं वहां हर महीने अपने दादा जी की याद में एक दिन उन बुजुर्गों के साथ बिताने
जाती थी | दिल बोझिल हो गया था यह देख कर कि इस नस्ल को पाश्चात्यीकरण का जो कीड़ा
काटा है वो हमारी जड़े खोखली कर रहा है |
·
आपको बता दूं की समाज
कल्याण मंत्रालय के एक अनुमान के अधार पर २००९-१० में देश में ७२८ वृद्धाश्रम थे
जो २०१३-१४ में बढ़ कर १५७६ का आंकड़ा पर कर चुके हैं|
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दिल्ली और ऐसे ही
मेट्रो शहरों में व उनके आसपास दर्जनों ओल्ड ऐज होम चल रहे हैं |
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इनकी बढती संख्या से
यह अनुमान लगाया जा सकता है की तेज़ी से वृद्ध अपने घरों से बेघर किये जा रहे हैं |
संयुक्त परिवार तेज़ी से एकल परिवार में परिवर्तित हो रहे है |
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परिवार नामक संस्था
का विघटन हो रहा है |
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भारत में २००७ में
माता पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण पोषण विधेयक संसद में पारित किया गया |
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हमारा शास्त्र और
हमारी संस्कृति भी वृद्धों को साथ रखने की सहमती देती है - यदापि पोष मातरं
पुत्र: प्रभुदितो धयान्। इतदगे अनृणो भवाम्यहतौ पितरौ ममां॥ जिसका
अर्थ है कि जिन माता पिता ने मुझे पाल कर बड़ा किया है उनके अशक्त होने पर मैं उनके
साथ रहूँ और उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा का ध्यान रखूं | इसी से मैं उनके ऋण से
मुक्त होऊंगा|
इस तरह के और कई सरे तथ्यों के बारे में पढ़ा मैंने पर मुझे
फिर भी यह नहीं समझ आया की इतने पढ़ लिख जाने के बाद भी यह पीढ़ी इतनी छोटी सी बात
को नही समझ पा रही है | उस रोज़ कई बच्चे अपनी माओं से मिलने आये थे पर सगुना दादी
का बेटा अपनी माँ को वृद्धा-आश्रम में छोड़ गया था | इत्तेफाक से उस दिन मदर्स डे
था |
आँचल श्रीवास्तव
आँचल श्रीवास्तव
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