डब्लूएचओ की हालिया रिपोर्ट
जहाँ एक तरफ सुकून देती है वहीँ परेशानी में भी डालती है | सुकून इस बात का की
दिल्ली अब सबसे अधिक प्रदूषित शहर नहीं रहा और परेशानी इस बात की कि ग्वालियर
रांची और इलाहबाद जैसे शहर अब इस सूची में अव्वल हैं | विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से विश्व के 67 देशों के 795 शहरों में वायु प्रदूषण की स्थिति पर जारी ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि
हवा में पार्टिक्युलेट
मैटर यानी मानव स्वास्थ्य के लिए घातक धूल के बेहद बारीक कणों के मामले में दिल्ली की आबो हवा में पहले
से काफी सुधार हुआ है। इसके लिए सरकार की ओर से किए गए प्रयास प्रभावी साबित हुए हैं। दिल्ली को 2014 में सबसे प्रदूषित शहर का दर्जा मिला था।
वर्ष 2008
से 2013 के बीच एकत्रित डेटा पर आधारित डब्ल्यूएचओ की एक नयी रिपोर्ट के अनुसार नई
दिल्ली 11वां सबसे प्रदूषित शहर है
जबकि चार अन्य भारतीय शहर ग्वालियर (दो),
इलाहाबाद (तीन), पटना (छह) और रायपुर (सात) सबसे अधिक वायु
प्रदूषण वाले सात शहरों में शामिल हैं।
रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि शहर के 80 प्रतिशत से अधिक शहरवासी खराब हवा में सांस लेते हैं।
रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि शहर के 80 प्रतिशत से अधिक शहरवासी खराब हवा में सांस लेते हैं।
वातावरण में
पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5
की मात्रा बढ़ने से दिल का दौरा पड़ सकता है। यह
बहुत ही सूक्ष्म कण होता हो जो सांस के ज़रिये इंसान के खून में मिलकर दिल तक पहुंचता है जिससे दिल
का दौरा पड़ता है।
वायु प्रदूषण से
होने वाला नुकसान
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विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हर साल २-४ लाख
लोगों की मौत का कारण
सीधे सीधे वायु प्रदूषण है|
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दुनिया भर में हर
साल मोटर गाड़ी से होने वाली मौतों की
तुलना में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतें अधिक है|
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भारत में सबसे
भयंकर नागरिक प्रदूषण आपदा १९८४ में भोपाल आपदा थी| संयुक्त राज्य अमरीका की यूनियन
कार्बाइड फैक्ट्री कारखाने से रिसने वाली औद्योगिक वाष्प से २००० से अधिक लोग मारे गए और १५०,००० से ६००,००० दूसरे लोग घायल हो गए जिनमे से ६,००० लोग बाद में मारे गए।
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वायु प्रदूषण से
होने वाले स्वस्थ्य प्रभाव जैविक रसायन और शारीरिक परिवर्तन से लेकर श्वास में परेशानी, घरघराहट, खांसी और विद्यमान श्वास तथा हृदय की परेशानी हो सकती है।
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फेफड़े में
लगातार रुकावट की बीमारी (COPD) में शामिल हैं चिरकालिक ब्रॉन्काइटिस,
वातस्फीति और कुछ प्रकार के अस्थमा जैसे रोग भी इनमे शामिल है |
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दुनिया भर के
अत्यधिक वायु प्रदूषण वाले शहरों में ऐसी संभावना है कि उनमें रहने वाले बच्चों
में कम जन्म दर के अतिरिक्त अस्थमा, निमोनिया और दूसरी श्वास सम्बन्धी
परेशानियाँ विकसित हो सकती हैं।
यह सब एक ट्रेलर भर है |
अगर हम पर्यावरण को लेकर जागरूक न हुए तो भीषण परिणाम देखने को मिल सकते हैं |
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