Friday, 20 May 2016

उर्मिला है त्याग का एक अप्रतिम उदाहरण| कुछ ऐसी बातें उर्मिला के विषय में जो आप नही जानते|



श्री रामायण को आजतक हमने अपने और इस समाज ने श्री राम की दृष्टिकोण से देखा ; लक्ष्मण को देखा ; देवी सीता को जाना ; हनुमान के भक्ति भाव को जाना ; रावण के ज्ञान को पहचाना लेकिन कभी यह नही ध्यान दिया की इस पूरे कार्यक्रम में अगर कोई सबसे अधिक उपेक्षित और अनदेखा पात्र था तो वो थी लक्ष्मण की पत्नी और जनकनंदिनी सीता की अनुजा उर्मिला |
जब राम सीता वनवास को जाने लगे और बड़े आग्रह पर लक्ष्मण को भी साथ जाने की आज्ञा हुई तो पत्नी उर्मिला ने भी उनके साथ जाने का प्रस्ताव रखा परन्तु लक्ष्मण ने उन्हें यह कहकर मना कर दिया की अयोध्या के राज्य को और माताओं को उनकी आवश्यकता है |
असीम पतिव्रता थी उर्मिला
उर्मिला के उस नवयौवन कंधो पर इतना बड़ा दायित्व डाल कर लक्ष्मण चले गए| वो पल, वो जीवन सरिता जो कोई भी नववधू अपने पति के साथ गुजारती है, वो उर्मिला के नसीब में नहीं लिखी गयी थी| पतिव्रता स्त्री ने जीवन के चंचल पड़ाव पर भी, अपने पति से दूर रहने पर भी लेशमात्र भी किसी और का ध्यान नहीं किया| यह उर्मिला का अखंड पतिव्रत धर्म था, यह उर्मिला की अवर्णित, अचर्चित, अघोषित महानता थी| उर्मिला के महान चरित्र, अखंड पतिव्रत, स्नेह और त्याग की चर्चा रामायण में अपेक्षित थी पर वो हो न सका|
सबसे विकट क्षणों में भी उर्मिला आंसू न बहा सकी क्योंकि उनके पति लक्ष्मण ने उनसे एक और वचन लिया था की वो कभी आंसू न बहायेंगी, क्यूंकि अगर वो अपने दुःख में डूबी रहेगी तो परिजनों का ख्याल नहीं रख पाएंगी|
दशरथ की मृत्यु पर आंसू भी नहीं बहाए
ये कोई कल्पना कर सकता है की अपने पति को १४ वर्षो के लिए अपने से दूर जाने देना और उसकी विदाई पर आंसू भी न बहाना किसी नवविवाहिता के लिए कितना कष्टकारी हो सकता है? कितना हृदयविदारक पल था वो जब परम पूज्यनीय महाराज दशरथ स्वर्ग सिधार गए, पर वचन के सम्मान रखने के लिए उर्मिला तब भी न रोई| महाराज जनक अपनी पुत्री को मायके अर्थात मिथिला ले जाना चाहते थे ताकि माँ और सखियों के सान्निध्य में उर्मिला का पति वियोग का दुःख कुछ कम हो सके परन्तु उर्मिला ने मिथिला जाने से सादर इंकार कर दिया, ये कहते हुए की अब पति के परिजनों के साथ रहना और दुखो में उनका साथ न छोड़ना ही अब उसका धर्म है|

चौदह वर्षों तक सोती रहीं
बहुत से लोग इस बात से परिचित हैं कि अपने वनवास के दौरान भाई और भाभी की सेवा करने के लिए लक्ष्मण पूरे 14 साल तक नहीं सोए थे। उनके स्थान पर उनकी पत्नी उर्मिला दिन और रात सोती रहीं। लेकिन यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि रावण की बेटे मेघनाद को यह वरदान प्राप्त था कि जो इंसान 14 वर्षों तक ना सोया हो केवल वही उसे हरा सकता है। इसलिए लक्ष्मण मेघनाद को मोक्ष दिलवाने में कामयाब हुए थे।रावण के अंत और 14 वर्ष के वनवास के पश्चात जब राम, सीता और लक्ष्मण वापस अयोध्या लौटे तब वहां राम के राजतिलक के समय लक्ष्मण जोर-जोर से हंसने लगे। सभी को ये बात बेहद आश्चर्यजनक लगी कि क्या लक्ष्मण किसी का मजाक उड़ा रहे हैं? जब लक्ष्मण से इस हंसी का कारण पूछा तो उन्होंने जो जवाब दिया कि ताउम्र उन्होंने इसी घड़ी का इंतजार किया है लेकिन आज जब यह घड़ी आई है तो उन्हें निद्रा देवी को दिया गया वो वचन पूरा करना होगा जो उन्होंने वनवास काल के दौरान 14 वर्ष के लिए उन्हें दिया था।
दरअसल निद्रा ने उनसे कहा था कि वह 14 वर्ष के लिए उन्हें परेशान नहीं करेंगी और उनकी पत्नी उर्मिला उनके स्थान पर सोएंगी। निद्रा देवी ने उनकी यह बात एक शर्त पर मानी थी कि जैसे ही वह अयोध्या लौटेंगे उर्मिला की नींद टूट जाएगी और उन्हें सोना होगा। लक्ष्मण इस बात पर हंस रहे थे कि अब उन्हें सोना होगा और वह राम का राजतिलक नहीं देख पाएंगे। उनके स्थान पर उर्मिला ने यह रस्म देखी थी।
लक्ष्मण की विजय का कारण था उर्मिला का पतिव्रत
एक और वाकया ऐसा है जो यह बताता है की लक्ष्मण की विजय का मुख्य कारण उर्मिला थी | मेघनाद के वध के बाद उनका शव राम जी के खेमे में था जब मेघनाद की पत्नी सुलोचना उसे लेने आयी| पति का छिन्न शीश देखते ही सुलोचना का हृदय अत्यधिक द्रवित हो गया। उसकी आंखें बड़े जोरों से बरसने लगीं। रोते-रोते उसने पास खड़े लक्ष्मण की ओर देखा और कहा- "सुमित्रानन्दन, तुम भूलकर भी गर्व मत करना की मेघनाथ का वध मैंने किया है। मेघनाद को धराशायी करने की शक्ति विश्व में किसी के पास नहीं थी। यह तो दो पतिव्रता नारियों का भाग्य था।

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