बीते दिनों प्रत्युषा बनर्जी ने खुद को फांसी के फंदे से लटका कर अपनी जिंदगी खत्म कर ली | उससे पहले ऐसा ही कुछ हमने जिया खान के साथ देखा |कभी रोहित वेमुला तो कभी किसान गजेन्द्र सिंह ऐसे न जाने कितने ही उदाहरण हैं हमारे सामने जब लोगों ने खुद को मौत के घाट उतार लिया और वजह सिर्फ इतनी थी की वो जीवन के झंझावातों का सामना करने में कमजोर पड़ गये | कभी समाज का प्रेशर तो कभी परिवार का कभी पढाई का या कभी नौकरी करने का प्रेशर या कभी आपसी अनबन या कभी प्यार पूरा न होने की चाहत और कभी धोखा| हर एक आत्महत्या के पीछे वजह सिर्फ एक; खुद को कमतर समझना | मैं पूछती हूँ की अपमे ऐसी कौन सी कमी है जो आप खुद से इतनी नफरत करने लगते हैं | जीवन है तो परेशानियाँ होना स्वाभाविक है ; बिना नमक की सब्जी में कोई जायका नहीं होता| हर वक्त मीठा खाने से बीमारी हो जाती है | उसी तरह जीवन में उतर चढ़ावों का स्थान है |कभी खुशियाँ आती हैं तो कभी तकलीफें लेकिन क्या तकलीफों और मुश्किलों का दौर इतना भरी पड़ जाता है की इन्सान अपने आप को खत्म करने के बारे में सोचने लग जाए|
एक दफा मैंने एक लेख लिखा था जिसमे मैंने यह बताया था की आज की पीढ़ी की समस्या यही है की वो सुख के पीछे नहीं दुख के पिछे भागती है| आज घर गाडी बंगला है तो एक ही गाडी क्यों है दूसरी क्यों नहीं मुम्बई में फ्लैट है तो बंगलौर और चण्डीगढ़ में क्यों नहीं ; दुबई गये हैं तो जर्मनी क्यों नहीं | इन्सान की इच्छाओं और अपेक्षाओं का कोई अंत ही नहीं|
बड़े बुजुर्ग कहते थे की कम खाओ गम खाओ| आज लोग भर भर के ठूस लेते हैं पर फिर भी इच्छा खत्म नहीं होती | आइये एक नज़र डालते हैं बीते दिनों होने वाली आत्महत्याओं के आंकड़ों पर-
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों से पता चलता है कि 15 से 29 वर्ष आयुवर्ग के लोगों द्वारा आत्महत्याएं 2004 के 35 प्रतिशत से बढ़कर 2014 में 41 प्रतिशत हो गईं|
इन्हीं से पता चलता है कि देश में हर आयुवर्ग में आत्महत्या करने की दर वर्ष 2004 में प्रति एक लाख आबादी पर 10.5 से बढ़कर 2014 में 10.6 हो गई|
इस तरह पता चलता है कि हर एक लाख भारतीयों में 10 से 11 लोग लगातार आत्महत्याएं कर रहे हैं...
आत्महत्या करने वालों में किसानों के अलावा सबसे अधिक छात्र, युवा और महिलाएं शामिल हैं... वर्ष 2004 में देश में हुई आत्महत्याओं में छात्रों का प्रतिशत 4.9 था, जो 2014 में बढ़कर 6.1 प्रतिशत हो गया...
छात्रों के अलावा दूसरे वर्गों में यह इजाफा तो 2004 के 13 प्रतिशत से बढ़कर 2014 में 31 प्रतिशत पर पहुंच गया... वैसे आत्महत्याएं हमारे देश में ही नहीं, दुनियाभर में बढ़ रही हैं... विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक वर्ष 1970 के बाद से आत्महत्या की दर में 60 प्रतिशत से ज़्यादा का इजाफा हुआ है...
अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका लांसेट का सर्वे कहता है कि भारत में आत्महत्या युवाओं की मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है।
आत्महत्या जैसा कदम उठाने की सबसे बड़ी वजह है अवसाद है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 2020 तक मौत का सबसे बड़ा कारण अपंगता व अवसाद होगा। जिस युवा पीढ़ी के भरोसे भारत वैश्विक शक्ति बनने की आशाएं संजोए है, उसका यूं उलझना समाज व राष्ट्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा।
इन मानसिक तनाव से मुक्ति का सबसे महत्वपूर्ण उपाय उसका अपना विवेक है। संस्कारवान शिक्षा दीक्षा तथा नैतिकता के माध्यम से उसका रास्ता प्रशस्त होता है। इसके लिए दृढ़संकल्प, अदम्य साहस, अथक परिश्रम, धैर्य, यथार्थ को ज्ञान, सहनशीलता और सबसे अधिक स्वावलंबन, आत्म निर्णय एवं आत्मविश्वास की भी आवश्यकता होती है। यह जीवन एक साधना है। इसे आप एक नियमित दिनचर्या बनाकर, एक उद्देश्य को सामने रख कर जिएं। अपने अंदर अच्छे गुण पैदा करें। पुण्य कार्य करें।
हरिवंश राय बच्चन साहब ने लिखा है-
रात के उत्पात भय से भीत जन जन भीत कण कण
किन्तु प्राची की उषा में मोहिनी मुस्कान फिर फिर
नीड़ का निर्माण फिर फिर
अपने सपनों के नीड़ का निर्माण फिर करे. यकीन मानिये जीवन बेहद खुबसुरत है |
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