जहाँ देश की एक चौथाई आबादी
सूखाग्रस्त है ; बारिश के ना होने के कारण हालात बद से बदतर होते जा रहें हैं |
लोगों को मीलों दूर से जाकर पानी लाना पड़ता है | खेत खलिहान सब बंजर होने लगे हैं
| जलवायु में भीषण परिवर्तन, मानसून का देर से
आना या न आना , ठंड न पड़ना , पृथ्वी का तापमान असामान्य तरीके से बढ़ना सभी कुछ
धरती पर जीवन के लिए खतरे की घंटी है |
हमारी सरकारें बेशक
इस ओर कई कदम उठा रही हैं लेकिन वे हर बार नाकाफ़ी साबित हो रहे हैं | ऐसे में
वैज्ञानिकों ने क्लाउड सीडिंग या मेघ बीजन का एक नया तरीका इजात किया है जिससे
कृत्रिम वर्षा करके हम वापस अपने खेत खलिहानों को हरा भरा और फसलदार बना सकते हैं
|
मेघबीजन के क्या हैं
फायदे
मेघ बीजन हम ड्रोन
तकनीक के माध्यम से कर सकते हैं | यह ड्रोन किसी भी इलाके के उपर सिल्वर आयोडाइड
की मदद से आसमान में बर्फ के क्रिस्टल बनाता है जिससे कृत्रिम बारिश होती है | मेघ बीजन का उपयोग केवल वर्षा कराने के लिए ही नहीं किया जाता है, बल्कि इसका प्रयोग ओलावृष्टि रोकने और धुंध हटाने में भी किया जाता है। आस्ट्रेलिया और पूर्वी यूरोप में ओलावृष्टि काफी अधिक मात्रा
में होती है, इसीलिए वहां मेघ बीजन का उपयोग काफी बड़े पैमाने पर किया
जाता है। मेघ बीजन की विधि विकसित होने से पूर्व आस्ट्रेलिया और पूर्वी यूरोप में ओलावृष्टि से भारी क्षति उठानी पड़ती थी। मेघ बीजन से इन क्षेत्रों
में काफी राहत मिली है। हवाई अड्डों पर
छाई धुंध के कारण दुर्घटना होने की आशंका काफी बढ़ जाती है। इसलिए, मेघबीजन से हवाई अड्डों के आस-पास छाई धुंध को हटाया जा सकता है। इस प्रकार मेघ
बीजन वर्तमान समय में विज्ञान का एक अच्छा वरदान है।
कैसे करते हैं
कृत्रिम वर्षा
मेघ बीजन से
वाष्पीकरण शीघ्रता से वर्षा की बड़ी-बड़ी बूंदों में परिवर्तित हो जाते हैं और
बरस पड़ते हैं। इसके लिए बादलों में बीजकारक पदार्थों को बिखेरा और छिड़का जाता है। बीजकारक पदार्थ के
रूप में प्रायः सूखी बर्फ (ठोस कार्बन
डाइऑक्साइड) सिल्वर अयोडाइड
और अमोनियम नाइट्रेट और यूरिया से मुक्त द्रावक प्रयोग में
लाए जाते हैं। मेघ बीजन की धरती की सतह से भी किया जा सकता है और आकाश में बादलों के बीच जाकर भी
किया जा सकता है। ज़मीन पर से मेघ बीजन करने के लिए खुले में अंगारों के ऊपर सिल्वर
आयोडाइड के स्फटिक (क्रिस्टल) रखकर गर्म किए जाते हैं। स्फटिक गर्म होकर
वाष्परूप में ऊपर उठते हैं और हवा के साथ बादलों तक पहुंच जाते हैं। बीजकारक की वाष्प बादलों में पहुंचकर वर्षा की
बूंदें बनने की प्रक्रिया को काफी शीघ्रता से संपन्न कराते हैं और जल्दी ही वर्षा होने लगती है।
पहले भी हुए है
ऐसे प्रयोग
भारत में इसका
प्रयोग १९८३ में तमिलनाडू सरकार ने किया था| अनुभव बताते है कि किसी क्षेत्र में
बारिश करवाने के लिए एक दिन का १८ लाख रूपये का खर्च आता है | तमिलनाडु की तर्ज पर
कर्नाटक सरकार ने भी इस विधि से मेघ बीजन करके बारिश करवाई थी | कुछ स्थानों पर
सिल्वर आयोडाइड की जगह कैल्शियम क्लोराईड का प्रयोग हुआ | भारत जैसे गरम देशों के
लिए यह प्रयोग काफी कारगर साबित हुए |
आसान नहीं है यह
कदम
बीते वर्षों में
कई बार यह प्रयोग फेल भी हुआ है | २००९ में ग्रेटर मुम्बई में नगर निगम प्रशासन
द्वारा किये गये इस प्रयोग में ज़रा सी चूक के कारण ४८ करोड़ रूपये का नुकसान हो गया
| इस प्रक्रिया को करने के लिए गहरे अनुभव की आवश्यकता है | ज़रा सी चूक भरी नुकसान
कर सकती है | जिस स्थान पर बारिश करवानी है वहां का भूगौलिक डाटा बड़ी सतर्कता से
जमा करना पड़ता है | बादलों की एक निर्धारित संख्या भी ज़रूरी है |
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