मई का दूसरा रविवार
आते आते मदर्स डे की चर्चाये गरम हो जाती है | उन पर कई तरह के लेख लिखे जाते हैं
| कभी माँ के लिए तोहफे तो कहीं माँ के साथ सेल्फी लेने की होड़ लग जाती है | सभी
अपने अपने तरह से इसे मनाना चाहते है | एक दिन माँ के नाम करने में वो कोई कसर
नहीं छोड़ते | अब तो यह फैशन सरीखा हो गया है | और तो और पापा लोग भी बच्चों की मदद
करते हैं मम्मी को खुश करने में |
पर ज़रा एक बार सिंगल
मदर्स पर भी गौर किया जाए| जिनके या तो पति नहीं रहे या छोड़ गये या फिर वे अपने
बच्चो के साथ अपनी मर्जी से अलग रहती है या अविवाहित अभिभावक है | जीवन उनके लिए
ज़रा अलग सा होता है | कहते हैं उम्र में कई ऐसे पड़ाव आते है जिनमे किसी अपने की
किसी हमसफर की ज़रूरत पेश आती है | पर इन सिंगल मदर्स ने इस ज़रूरत को और इस सोच को
दोनों को ही दरकिनार करके अपने रास्ते खुद तय किये है | अपनी मंजिलें खुद पायी है
बिना किसी हमसफर के |
सुपरमॉम बनती आज की माएं
एक साधारण लडकी से
सुपरमॉम बनने का सफर इनके लिए कभी आसान नहीं रहा| बच्चों के लिए माँ और पिता दोनों
बनना एक मुश्किल काम होता है | क्योंकि हमारा देश आज भी पितृ सत्ता से ग्रसित है तो
ऐसे में यह कदम एक औरत के लिए आग पर चलने के बराबर ही है | लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सिंगल
मदर्स के हक में एक अहम फैसला दिया है –
कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
जुलाई, 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक
फैसले में बिन ब्याही मां के अपने बच्चे के स्वाभाविक अभिभावक होने पर मुहर लगाई| कोर्ट ने कहा कि कोई भी सिंगल पेरैंट या अनब्याही मां बच्चे
के जन्म प्रमाणपत्र के लिए आवेदन करे तो उसे वह जारी किया जाए| सुप्रीम कोर्ट का
यह फैसला उन अविवाहित मांओं के लिए एक बेहतर फैसला साबित हुआ है, जो विवाह से पहले गर्भवती हो गई थीं, क्योंकि ऐसी युवतियों को अपनी संतान के
पिता का नाम बताना अब जरूरी नहीं होगा| फैसले में कोई भी महिला बिना शादी के भी अपने बच्चे का पालन कर कानूनन अभिभावक बन सकती है, जिस के लिए उसे पुरुष के नाम व साथ की
जरूरत नहीं होगी| अब किसी भी महिला को अपने बच्चे या समाज
को उस के पिता के नाम को बताना जरूरी
नहीं होगा| कोर्ट ने कहा है कि यदि महिला अपनी कोख से पैदा हुए बच्चे के जन्म प्रमाणपत्र के लिए अर्जी देती है तो
संबंधित अधिकारी हलफनामा ले कर प्रमाणपत्र जारी कर दें |
कुछ और महत्वपूर्ण जानकारियाँ
जनवरी से मार्च, 2015 के बीच भारत में गोद लिए जाने वाले
बच्चों की संख्या में पिछले 3 सालों में पहली बार बढ़ोतरी दर्ज की गई | 2006 के आंकड़ों के अनुसार 82 फीसदी से ज्यादा भारतीय बच्चे अपने
मातापिता के साथ रहते हैं| जो किसी एक पेरैंट के साथ रहते हैं, उन का आंकड़ा 8|5 फीसदी है| यहां एक पेरैंट का मतलब सिंगल मदर है|सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का महिला
अधिकार समर्थकों ने स्वागत किया| वकील करुणा नंदी ने ट्विटर पर लिखा, ‘‘संरक्षता कानूनों में समानता लाए जाने की शुरुआत करने की जरूरत
थी|’’
दिल्ली सरकार के महिला और बाल विकास विभाग के आंकड़ों के
अनुसार 2007 से 2011 तक में लड़कों के मुकाबले लड़कियों को ज्यादा गोद लिया गया| 2011 में सरकार द्वारा पंजीकृत गैरसरकारी संस्थाओं से जहां 98 लड़के गोद लिए गए वहीं लड़कियों की संख्या 150 थी| द्य अब तक ‘द गार्जियन ऐंड वर्ड्स ऐक्ट’ और ‘हिंदू माइनौरिटी ऐंड गार्जियनशिप ऐक्ट’ के तहत बच्चे के लीगल गार्जियन का फैसला उस के पिता की सहमति के बगैर
नहीं हो पाता था, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि इस के लिए पिता की इजाजत की कोई
जरूरत नहीं है |
तो अगर आप है एक सिंगल मदर तो इसके लिए आपको बधाई हो | आप
बेशक अनुकरणीय है |आपको मदर्स डे की ढेरों शुभकामनायें|
आँचल श्रीवास्तव
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