Saturday, 6 August 2016

मजदूरों का नेता जो बना भारत का राष्ट्रपति



स्वतंत्र भारत के चौथे राष्ट्रपति वीवी गिरी को दिवंगत हुए आज ३६ साल हो गये |आइये आज आपको इनके विषय में कुछ महत्वपूर्ण बाते बताते हैं |
कैसे बीते शुरुआती दिन
माननीय वीवी गिरी जी का पूरा नाम वराहगिरी वेंकट गिरी था | इनका जन्म १० अक्टूबर १८९४ में ओडिशा के बेरहामपुर में एक तेलुगु ब्राह्मण परिवार में हुआ था | इन्होने अपनी शिक्षा बेरहामपुर कोलेज ओए यूनिवर्सिटी कॉलेज डबलिन से पूरी की | १९१६ में आयरलैंड से हटाये जाने के बाद ये भारत आ गये और यहाँ इन्होने भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस को ज्वाइन किया |
उत्तर प्रदेश के राज्यपाल भी रहे
इन्हें आल इंडिया रेलवेमेन फेडरेशन का संस्थापक भी माना जाता है | इसी दौरान ये दो बार आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के प्रमुख भी बने| १९४७ में इन्हें सीलोन का हाई कमिश्नर नियुक्त किया गया| १९५७ से १९६७ के बीच उत्तर प्रदेश; केरल और मैसूर के राज्यपाल रहने के दौरान ही इन्हें १९६७ में उप राज्यपाल के पड़ के लिए चुना गया |
निर्दलीय उम्मेदवार होकर जीता चुनाव
राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मृत्यु के बाद ३ मई १९६९ से २० जुलाई १९६९ तक यह कार्यकालिक राष्ट्रपति रहे  और १९६९ में हुए राष्ट्रपति चुनाव में ये कांग्रेस के उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी को पिछाड कर निर्दलीय राष्ट्रपति बने|
भारत रत्न वीवी गिरी
वीवी गिरी को १९७५ में भारत रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया| १९७४ में पोस्ट एंड टेलीग्राफ डिपार्टमेंट ने इनके उपर एक पोस्टेज स्टाम्प भी इशू किया| १९९५ में नेशनल लेबर इंस्टिट्यूट को वीवी गिरी इंस्टिट्यूट के नाम से जाना जाने लगा| गिरी के जन्मस्थान पर एक स्कूल ; एक पूरा बाज़ार और एक जानी मणि सड़क इनके नाम पर ही है|
लेखन भी किया गिरी जी ने
गिरी जी ने इंडस्ट्रियल रिलेशन्स और लेबर प्रोब्लेम्स इन इंडियन इंडस्ट्री सरीखी दो किताबों का लेखन भी किया है | १९७६ में उनकी रचनाओं का संग्रह माय लाइफ एंड टाइम्स के नाम से छपा|
हृदयाघात के कारण हुई मृत्यु
24 जून १९८० को वीवी गिरी जी हार्ट अटैक के कारण मृत्यु को प्राप्त हुए | उन्हें राजकीय सम्मान और श्रद्धांजली दी गयी और भारतीय सरकार ने एक हफ्ते का लम्बा शोक घोषित किया|
एच बालाकृष्णन ने अपनी किताब में इनके बारे में लिखा है की ये मजदूरों के वो नेता थे जो राष्ट्रपति बने|

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