कहते हैं की हाथ में पहनी हुई घड़ी न सिर्फ इन्सान को समय बताती है बल्कि
इन्सान का समय भी बताती है| कंफ्यूज हो गये क्या? कभी आपने सोचा है कि घड़ी जो बिना रुके हर वक़्त चलती रहती है
; कहाँ बनी होगी? सबसे पहले घड़ी में टाइम कैसे सेट किया गया होगा? कहीं वो टाइम गलत तो नहीं ; वरना आज तक हम सब गलत समय जीते आ रहे हैं| इन्ही सब सवालों के साथ आज कुछ घड़ी अपनी घड़ी की बात करते हैं|
कई सिद्धांतों पर बनती हैं घड़ियाँ
जैसा की हम सब जानते हैं की घड़ी एक सिम्पल मशीन है जो पूरी तरह स्वचालित है और
किसी न किसी तरह से वो हमे दिन का प्रहर बताती है| ये घड़ियाँ अलग अलग सिद्धांतों पर बनती हैं जैसे
धूप घड़ी; यांत्रिक घड़ी और इलेक्ट्रॉनिक घड़ी| जब हम बचपने में
विज्ञान पढ़ा करते थे तो आपको याद होगा की इंग्लैंड के ऐल्फ्रेड महान ने मोमबत्ती
द्वारा समय का ज्ञान करने की विधि आविष्कृत की। उसने एक मोमबत्ती पर, लंबाई की ओर समान दूरियों पर चिह्र अंकित कर दिए थे। प्रत्येक चिह्र तक मोमबत्ती के
जलने पर निश्चित समय व्यतीत होने का ज्ञान होता था।
कैसे देखते थे समय बीते समय में-
प्राचीन काल में धूप के कारण पड़नेवाली किसी वृक्ष अथवा अन्य स्थिर वस्तु की छाया के द्वारा
समय के अनुमान किया जाता था। ऐसी धूपधड़ियों का प्रचलन अत्यंत प्राचीन काल से होता आ रहा है जिनमें
आकाश में सूर्य के भ्रमण के करण किसी पत्थर या लोहे के स्थिर टुकड़े की परछाई की गति में होनेवाले परिवर्तन के द्वारा "घड़ी" या "प्रहर" का अनुमान किया जाता था। बदली के दिनों में, अथवा रात में, समय जानने के लिय जल
घड़ी का आविष्कार चीन देशवासियों ने लगभग तीन हजार वर्ष पहले किया था। कालांतर में यह विधि मिस्रियों, यूनानियों एवं रोमनों को भी ज्ञात हुई। जलघड़ी
में दो पात्रों का प्रयोग होता था। एक पात्र में पानी भर दिया जाता या और उसकी तली में छेद कर दिया जाता था।
उसमें से थोड़ा थोड़ा जल नियंत्रित बूँदों के रूप में नीचे रखे हुए दूसरे पात्र में गिरता था। इस
पात्र में एकत्र जल की मात्रा नाप कर समय अनुमान किया जाता था। बाद में पानी के स्थान पर बालू का प्रयोग होने लगा।
ऐसे बनी पहली घड़ी-
पहली घड़ी सन् 996 में पोप सिलवेस्टर सेकंड ने बनाई थी। यूरोप
में घड़ियों का प्रयोग 13वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में होने लगा था। इंग्लैंड के वेस्टमिंस्टर के घंटाघर में सन् 1288 में तथा सेंट अल्बांस में सन् 1326 में घड़ियाँ लगाई गई थीं। डोवर कैसिल में सन् 1348 में लगाई गई घड़ी जब सन् 1876 ई. विज्ञान प्रदर्शनी
में प्रदर्शित की गई थी,
तो उस समय भी काम कर रही थी। सन् 1300 में हेनरी डी विक ने पहिया (चक्र), अंकपृष्ठ (डायल) तथा घंटा निर्देशक सूईयुक्त पहली घड़ी बनाई थी, जिसमें सन् 1700 ई. तक मिनट और सेकंड की
सूइयाँ तथा दोलक लगा दिए गए थे। आजकल की यांत्रिक
घड़ियाँ इसी शृंखला की संशोधित, संवर्धित एवं विकसित कड़ियाँ हैं।
एटॉमिक घड़ी भी है-
सन् 1948 में संयुक्त राज्य, अमरीका, के ब्यूरो ऑव
स्टैंडर्ड्स की ओर से परमाण्वीय घड़ियों का प्रारूप निर्धारित करने की घोषण हुई। ये घड़ियाँ भी दाब-विद्युत्-मणिभयुक्त सामान्य विद्युत् घड़ियों की भाँति
होती हैं। अंतर
केवल इतना होता है कि इनकी
नियंत्रक फ्रीक्वेंसी प्रत्यावर्ती विद्युतद्धारा के बदले उत्तेजित अणुओं या परमाणुओं के स्वाभाविक-रेजोनेंस फ्रीक्वेंसी(आवृत्ति) द्वारा प्रदान की जाती है। ये आवृत्तियाँ प्राय: 1010 चक्र (cycles) प्रति सेकंड की कोटि की होती हैं। ऐसी परमाण्वीय घड़ियाँ अत्यंत
सुग्राही एवं यथार्थ होती हैं और वर्ष में 0.01 सेकंड तक की भी गलती नही होती इनसे|
इन्हें भी जाने-
·
लगभग सवा दो हज़ार
साल पहले प्राचीन यूनान यानी ग्रीस में पानी से चलने वाली अलार्म घड़ियाँ हुआ करती थीं जिममें पानी के गिरते स्तर के साथ तय समय
बाद घंटी बज जाती थी| लेकिन आधुनिक घड़ी
के आविष्कार का
मामला कुछ पेचीदा है|
·
घड़ी की मिनट वाली
सुई का आविष्कार किया वर्ष 1577 में स्विट्ज़रलैंड के जॉस बर्गी ने अपने एक खगोलशास्त्री
मित्र के लिए| उनसे पहले जर्मनी के
न्यूरमबर्ग शहर में पीटर हेनलेन ने ऐसी घड़ी बना ली थी जिसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाया सके|
·
जिस तरह हम आज हाथ
में घड़ी पहनते हैं वैसी पहली
घड़ी पहनने वाले आदमी थे जाने माने फ़्राँसीसी गणितज्ञ और दार्शनिक ब्लेज़ पास्कल| ये वही ब्लेज़ पास्कल हैं जिन्हें कैलकुलेटर का आविष्कारक भी माना जाता है|
·
लगभग 1650 के आसपास लोग घड़ी जेब में रखकर घूमते थे, ब्लेज़ पास्कल ने एक रस्सी से इस घड़ी को हथेली
में बाँध लिया ताकि वो काम करते समय घड़ी देख सकें, उनके कई साथियों ने उनका मज़ाक भी उड़ाया लेकिन आज हम सब हाथ में घड़ी पहनते हैं|
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