Saturday, 6 August 2016

तकनीकी ने बदल दी छपाई की दुनिया



आज के अख़बारों में हम रोज सुबह नयी नयी रंग बिरंगी तस्वीरें और अक्षर जो हमे दिखते हैं ; क्या आप जानते हैं की यह कैसे बनते हैं ? आपका जवाब होगा कंप्यूटर से| लेकिन ये कंप्यूटर तो अभी दो तीन दशकों से आया है पर ये छपाई का काम तो सदियों पुराना है | तब कैसे काम होता होगा ? आईये जानते हैं –
चीन है छपाई का मुख्य प्रवर्तक-
सन् १०५ ई. में चीनी नागरिक टस्-त्साई लून ने कपस एवं सलमल की सहयता से कागज का आविष्कार किया। सन् ७१२ ई. में चीन में एक सीमाबद्ध एवं स्पष्ट ब्लाक प्रिंटिंग की शुरूआत हुई। इसके लिए लकड़ी का ब्लाक बनाया गया। चीन में ही सन् ६५० ई. में हीरक सूत्र नामक संसार की पहली मुद्रित पुस्तक प्रकाशित की गयी। सन् १०४१ ई. में चीन के पाई शेंग नामक व्यक्ति ने चीनी मिट्टी की मदद से अक्षरों को तैयार किया। इन अक्षरों को आधुनिक टाइपों का आदि रूप माना जा सकता है। चीन में ही दुनिया का पहला मुद्रण स्थापित हुआ, जिसमें लकड़ी के टाइपों का प्रयोग किया गया था। टाइपों के ऊपर स्याही जैसे पदार्थ को पोतकर कागज के ऊपर दबाकर छपाई का काम किया जाता था। इस प्रकार, मुद्रण के आविष्कार और विकास का श्रेय चीन को जाता है।
जर्मनी में बना पहला छापाखाना
जर्मनी के जॉन गुटेनबर्ग ने सन् १४४० ई. में ऐसे टाइपों का आविष्कार किया, जो बदल-बदलकर विभिन्न सामग्री को बहुसंख्या में मुद्रित कर सकता था। इस प्रकार के टाइपों को पुनरावत्र्तक छापे (रिपीटेबिल प्रिण्ट) के वर्ण कहते हैं। इसके फलस्वरूप बहुसंख्यक जनता तक बिना रूकावट के समाचार और मतों को पहुंचाने की सुविधा मिली। इस सुविधा को कायम रखने के लिए बराबर तत्पर रहने का उत्तरदायित्व लेखकों और पत्रकारों पर पड़ा। जॉन गुटेनबर्ग ने ही सन् १४५४-५५ . में दुनिया का पहला छापाखाना (प्रिंटिंग-प्रेस) लगाया तथा सन् १४५६ . में बाइबिल की ३०० प्रतियों को प्रकाशित कर पेरिस भेजा। इस पुस्तक की मुद्रण तिथि १४ अगस्त १४५६ निर्धारित की गई है। जॉन गुटेनबर्ग के छापाखाने से एक बार में ६०० प्रतियां तैयार की जा सकती थी। परिणामत: ५०-६० वर्षों के अंदर यूरोप में करीब दो करोड़ पुस्तकें प्रिंट हो गयी थी।
रोटरी प्रेस से हुआ काम और आसान
सन् १८११ ई. के आस-पास रोटरी प्रेस का उपयोग होने लगा जिसमे गोल घूमने वाले सिलेण्डर चलाने के लिए भाप की शक्ति का इस्तेमाल होने लगा । हालांकि इसका पूरी तरह से विकास सन् १८४८ ई. के आस-पास हुआ। १९वीं सदी के अंत तक बिजली संचालित प्रेस का उपयोग होने लगा, जिसके चलते न्यूयार्क टाइम्स के १२ पेजों की ९६ हजार प्रतियों का प्रकाशन एक घंटे में संभव हो सका। सन् १८९० ई. में लिनोटाइप का आविष्कार हुआ, जिसमें टाइपराइटर मशीन की तरह से अक्षरों के सेट करने की सुविधा थी। सन् १८९० ई. तक अमेरिका समेत कई देशों में रंग-बिरंगे ब्लॉक अखबार छपने लगे। सन् १९०० . तक बिजली संचालित रोटरी प्रेस, लिनोटाइप की सुविधा और रंग-बिरंगे चित्रों को छापने की सुविधा, फोटोग्राफी को छापने की व्यवस्था होने से सचित्र समाचार पत्र पाठको तक पहुंचने लगे।
क्या है भारतीय छपाई का इतिहास?
भारतीय ऋषि-मुनियों ने सुनने की क्रिया को श्रुति और समझने को प्रक्रिया को स्मृति का नाम दिया। ज्ञान के प्रसार का यह तरीका असीमित तथा असंतोषजनक था, जिसके कारण मानव ने अपने पूर्वजों और गुरूजनों के श्रेष्ठ विचारों, मतों व जानकारियों को लिपिबद्ध करने की आवश्यकता महसूस की। इसके लिए लिपि का आविष्कार किया तथा पत्थरों व वृक्षों की छालों पर खोदकर लिखने लगा। इस तकनीकी से भी विचारों को अधिक दिनों तक सुरक्षित रखना संभव नहीं था। इसके बाद लकड़ी को नुकिला छीलकर ताड़पत्रों और भोजपत्रों पर लिखने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। प्राचीन काल के अनेक ग्रंथ भोजपत्रों पर लिखे मिले हैं।
तकनीकी ने दिए नये आयाम-
पहले प्राचीन समय में छपाई एक कला थी पर आज सब काम डिजिटलायिज़ हो गया है| तकनीक की क्रांति का इस उद्योग पर एक बहुत बड़ा और सकारात्मक असर हुआ जो देश में विकासात्मक बदलाव लाया| प्रिंट पत्रकारिता के चरम पर आने से भी छपाई को नए आयाम मिले| अब आप समझे की इतना आसान नहीं था आप तक खबरों को पहुंचा पाना|

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