हाल ही में बिमल दादा की एक
फिल्म देखी बंदिनी| वास्तव में परिवर्तन शील सिनेमा को भारत में जन्म देने वाले या
अग्रदूत कहे जा सकते हैं बिमल रॉय| बीते दिनों इनके बारे में बहुत कुछ पढ़ा जो आज
आपसे बांटना चाहती हूँ|
कौन थे बिमल रॉय?
बिमल रॉय भारतीय सिनेमा के
ऐसे मील के पत्थर हैं जिन्हें विशेषतः सामाजिक और वास्तविकता के आधार पर फिल्मे
बनाने के लिए जाना जाता है | यह एक ऐसे निर्देशक थे जिन्होंने यथार्थवादी और
व्यवयसायिक फिल्मों में एक दायरा बनाया| इतालियन यथार्थवादी सिनेमा से प्रेरित
होकर वित्तोरियो डे सीके की फिल्म बाइसिकल थीव्स देखने के बाद इन्होने दो बीघा
ज़मीन बनायीं|
कई पुरुस्कारों के विजेता
थे बिमल दा-
यह ऐसे कामों के लिए ही
जाने जाते रहें है जिनमे इन्होने समाज की सच्चाई को उभारा है | अपने जीवन काल में
इन्होने ११ फिल्मफेयर और २ नेशनल अवार्ड भी जीते | इन्हें कांस फिल्म फेस्टिवल में
में अंतर्राष्ट्रीय पुरुस्कार से सम्मानित किया गया| १९५८ में इनकी फिल्म मधुमती
को ९ फिल्मफेयर अवार्ड्स मिले जो अपनेआप में ३७ साल तक एक रिकॉर्ड बने रहे| इतने
पुरुस्कारों का मिलना इनकी प्रतिभा का विश्लेषण करता है|
कैसा था इनका शुरुआती जीवन?
१२ जुलाई १९०९ को बिमल दादा
का जन्म एक जमींदार परिवार में हुआ | जिस स्थान पर इनका जन्म हुआ वो अब बांग्लादेश
में है | जन्म के समय देश गुलाम था और जीवन का स्तर बड़ा ही निम्न था | ऐसे में
इन्होने बचपन से ही समाज की गम्भीर हालत को समझा और फिर यही तकलीफ और दर्द इनकी
फिल्मों का विषय बबनता रहा |
कैसे हुई करियर की शुरुआत?
इन्होने फ़िल्मी दुनिया में
एंट्री बतौर कैमरामैन की | १९३५ में इन्होने पीसी बरुआ की फिल्म देवदास और १९३७
में बनी मुक्ति के लिए फोटोग्राफी की | १९४४ में इन्होने बंगाली फिल्म उदयेरपोथे
के लिए निर्देशन का काम संभाला| १९४३ में बंगाल फेमिन से इन्होने निर्देशन की
शुरुआत की | १९५३ में देश में किसानों की बिगड़ी हुई दशा पर इनकी बनाई फिल्म दो
बिघा ज़मीन ने झंडे गाढ़ दिए|
कामर्शियल सिनेमा में भी
इन्होने मधुमती बना कर खुद को स्थापित किया | फिल्म का संगीत बेहद लोकप्रिय हुआ|
इन्होने अपने जीवन में जितनी भी फिल्मे बनायी सभी उत्कृष्टता की चरम पर रहीं पर १९६३
में बनी फिल्म बंदिनी में इनके हुनर का परचम लहराया|
बिमल दादा के फ़िल्मी जीवन
के महत्वपूर्ण बिंदु-
·
१९४४ में बनी बिमल दादा की
फिल्म उदयेर पाठे वास्तव में रबिन्द्रनाथ टैगोर की पोएम से लिया हुआ एक टाइटल है |
इस फिल्म में गुरुदेव के तीन गीत थे जिनमे मुख्यतः जन गन मन का फुल वेर्ज़न भी था
जिसे बाद में देश का राष्ट्रगान बनाया गया |
·
इन्होने फिल्म जगत को सलिल
चौधरी जैसा हुनर मंद गीतकार दिया|
·
ये खुद में ही एक्टिंग का
पूरा एक स्कूल थे जिन्होंने फिल्म जगत को कई नायाब फ़िल्मकार और लेखक दिए| ऋषिकेश
मुखर्जी; नबेंदु घोष; गुलज़ार आदि इन्ही की खोज थे |
·
इनकी फिल्मो में महिलाओं को
एक मजबूत किरदार की तरह सामाजिक कुरीतियों से लड़ते हुए दिखाया गया|
·
मधुमती में शायद फ़िल्मी
दुनिया में पहली बार इतने नामचीन लोगों को एक साथ खड़ा किया| लेखक ऋत्विक घटक;
एडिटर ऋषिकेश मुखर्जी; कंपोजर सलिल चौधरी और एक्टर दिलीप कुमार|
·
अपनी मृत्यु के कुछ दिन
पहले वो कुम्भ मेले पर आधारित एक द्वि-भाषीय फिल्म बना रहे थे जिसका नाम था अमृत
कुम्भ की खोज| इसका एक लाइव फुटेज इन्होने कुम्भ के मेले में शूट भी किया था |
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