Saturday, 6 August 2016

भारतीय कला के व्यापक इतिहास का द्योतक है नाट्य शास्त्र




गाना बजाना नाचना यह सब एक बड़ी ही प्राचीन कलाओं में से एक है| भारत जो हर प्रकार से कला और संस्कृति का धनी रहा है ;उसमे इन सभी कलाओं जैसे गीत; संगीत; वादन; नृत्य; चित्रकला; अभिनय आदि का एक प्राचीनतम ग्रन्थ है जिसे हम नाट्य शास्त्र के रूप में जानते हैं| इस ग्रन्थ के रचियता भरत मुनि थे जिनका जन्म ४०० ईसा पूर्व माना जाता है | नाट्यशास्त्र  नाट्य कला पर व्यापक ग्रंथ एवं टीका, जिसमें शास्त्रीय संस्कृत रंगमंच के सभी पहलुओं का वर्णन है। माना जाता है कि इसे भरत मुनि ने तीसरी शताब्दी से पहले लिखा था|
जीवन के चार लक्ष्यों को पूरा करने में सहायक है-
इसके कई अध्यायों में नृत्य, संगीत, कविता एवं सामान्य सौंदर्यशास्त्र सहित नाटक की सभी भारतीय अवधारणाओं में समाहित हर प्रकार की कला पर विस्तार से विचार-विमर्श किया गया है। इसका बुनियादी महत्व भारतीय नाटक को जीवन के चार लक्ष्यों, धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष के प्रति जागरूक बनाने के माध्यम के रूप में इसका औचित्य सिद्ध करना है।
क्या है इसके उद्भव की कहानी?
कहते है कि त्रेता युग में लोग दु:, आपत्ति से पीड़ित हो रहे थे। इन्द्र की प्रार्थना पर ब्रह्मा ने चारों वर्णों और विशेष रूप से शूद्रों के मनोरंजन और अलौकिक आनंद के लिए 'नाट्यवेद' नामक पांचवें वेद का निर्माण किया। इस वेद का निर्माण ऋग्वेद में से पाठ्य वस्तु, सामवेद से गान, यजुर्वेद में से अभिनय और अथर्ववेद में से रस लेकर किया गया। भरतमुनि को उसका प्रयोग करने का कार्य सौंपा गया। भरतमुनि ने 'नाट्य शास्त्र' की रचना की और अपने पुत्रों को पढ़ाया। इससे कथा से यह ज्ञात होता है की भरत मुनि ही नाट्य शास्त्र के प्रवर्तक है|
क्या है इसका विभाजन?
नाट्य शास्त्र के 36 अध्याय हैं। इसमें कुल 4426 श्लोक और गद्यभाग हैं। नाट्यशास्त्र की आवृतियां निर्णय सागर प्रेस, चौखम्बा संस्कृत ग्रंथमाला द्वारा प्रकाशित हुई है। गुजराती के कवि नथुराम सुंदरजी की 'नाट्य शास्त्र' पुस्तक है, जिसमें नाट्य शास्त्र का सार दिया गया है।
ऐसा विवरण २००० वर्षों में नहीं हुआ
नाट्य शास्त्र में नाट्य शास्त्र से संबंधित सभी विषयों का आवश्यकतानुसार विस्तार के साथ अथवा संक्षेप में निरुपण किया गया है। विषयवस्तु, पात्र, प्रेक्षागृह, रस, वृति, अभिनय, भाषा, नृत्य, गीत, वाद्य, पात्रों के परिधान, प्रयोग के समय की जाने वाली धार्मिक क्रिया, नाटक के अलग अलग वर्ग, भाव, शैली, सूत्रधार, विदूषक, गणिका, गणिका, नायिका आदि पात्रों में किस प्रकार की कुशलता अपेक्षित है, आदि नाटक से संबंधित सभी वस्तुओं का विचार किया गया है। नाट्यशास्त्र ने जिस तरह से और जैसा निरुपण नाट्य स्वरुप का किया है ऐसा निरुपण पिछले 2000 वर्षों में किसी ने नहीं किया।
क्या होता है अभिनय?
आजकल ‘’अभिनय’’ का अर्थ ‘’एक्टिंग’’ से लिया जाता है | परन्तु नाट्यशास्त्र’’में अभिनय का अर्थ ‘’एक्टिंग’’ न होकर कुछ अलग है | नाट्यशास्त्र में ‘’अभिनय’’ शब्द का अर्थ बहुत व्यापक है | आजकल अभिनय नाटक का एक अंग मात्र होता है ,लेकिन नाट्य शास्त्र में नाट्य नामक  तत्व ,अभिनय का एक अंग हुआ करता था !’’अभिनय’’ के दायरे में गायन, वादन, नर्तन, मंच, शिल्प, काव्य, आध्यात्म, दर्शन, योग, मनोविज्ञान, प्रकृति आदि अनेक विषय आते हैं|
आज के समय में क्या है नाट्यशास्त्र का उपयोग-
भरत मुनि का नाट्य शास्त्र नाटक का अपने आप में एक पूर्णतःव्यवस्थित एवं व्यापक ग्रन्थ है,जिसमे हर अंग को बारीकी और विस्तार से समझाया गया है| यह ग्रन्थ न सिर्फ आज बल्कि हर युग में हर काल में प्रासंगिक रहेगा|संचार के क्षेत्र में विश्व स्तर पर पढ़ा जाने वाला साधारणीकरण का सिद्धांत भी इसी से उत्पन्न है| यह एक ऐसा शास्त्र है जो रंगमंच और अन्य कलाओं का एक प्रमुख स्तंभ है | यह एक ऐसा मार्ग है जो जीवन में नवीन कल्पनाओं को जन्म देने की रचनात्मक्ता देगा|

No comments:

Post a Comment