आप सोचते होंगे कि मैं आज ये कैसी बातें कर रही
हूँ | एक चुटकी सिन्दूर की जगह तीन बीघा ज़मीन? ये मजाक नहीं है ये एकदम सच है | और
ये तीन बीघा ज़मीन का गलियारा और कहीं नहीं अपने देश की एक विवादित ज़मीन है | तीन
बीघा गलियारा भारत और बांग्लादेश की सीमा पर स्थित एक भारत का भूभाग है जो सितम्बर
२०११ में बंगलादेश को लीज पर दे दिया गया ताकि बांग्लादेश के दहग्राम-अंगरपोटा नामक
अंतर्वेशों या एन्क्लेव्स को सीधे भूमार्ग से बंगलादेश से जोड़ा जा सके।
जानिए क्या है पूरा सच
बांग्लादेश जब आजाद हुआ उस समय भारत-बांग्लादेश सीमा पर कई ऐसे क्षेत्र थे जो प्रशासनिक रूप से तो एक देश के अधिकार में थे लेकिन उन
तक पहुंच मार्ग दूसरे देश से होकर जाता था | ऐसे क्षेत्रों की अदला-बदली के लिए 1971 में ही दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ |
इंदिरा गाँधी के राज्य में हुआ था समझौता
श्रीमती इंदिरा गांधी और बांग्लादेश के प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर्रहमान की अगुवाई में
हुए इस समझौते में पहली बार तीन बीघा गलियारे का जिक्र किया गया था | समझौते के मुताबिक 1974 तक बांग्लादेश को अपने दक्षिण बेरूबारी क्षेत्र का एक हिस्सा भारत को सौंपना था और इसके बदले में
उसे तीन बीघा गलियारे का नियंत्रण मिलना था | भारतीय भूमि का यह 178 x 85
वर्ग मीटर क्षेत्र
बांग्लादेश के दहाग्राम-अंगारपोटा इलाके के लिए पहुंचमार्ग है |
कानूनी अड़चनें भी खूब पड़ी
समझौते के बाद कुछ ही महीनों में बांग्लादेश ने दक्षिण बेरूबारी का हिस्सा
भारत को सौंप दिया, लेकिन उसे तीन बीघा
गलियारा क्षेत्र पर नियंत्रण नहीं मिला | दरअसल भारत द्वारा बांग्लादेश को यह क्षेत्र दिए जाने की दिशा में कई कानूनी
और संवैधानिक अड़चनें तो थी हीं साथ ही इस मामले पर पश्चिम बंगाल में काफी विरोध
भी देखने को मिल रहा था | 1974 में जब मसला नहीं सुलझा तो भारत-बांग्लादेश के बीच 1982 में फिर एक समझौता
हुआ, लेकिन बात आगे नहीं
बढ़ी |
कुछ देर के लिए खोला जाता था गलियारा
1992 में फिर से एक समझौता हुआ और तीन बीघा गलियारा दिन में छह
घंटे के लिए बांग्लादेशी नागरिकों की आवाजाही के लिए खोलने पर सहमति बन गई | जून, 1996 में यह अवधि बढ़ाकर 12 घंटे कर दी गई | लेकिन इस बीच इस
क्षेत्र का नियंत्रण भारत के पास ही रहा | तीन बीघा गलियारा को लेकर एक व्यापक समझौता 2011 में हो पाया जब यह क्षेत्र लीज पर बांग्लादेश
को दे दिया गया |
देशों की आपसी रंजिश में हमेशा हुआ मानवाधिकार का हनन
इस दौरान लगभग तीन दशक तक बांग्लादेश की तकरीबन 12 हजार की आबादी न सिर्फ अपने देश से दूर रही
बल्कि उसे मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित रहना पड़ा |
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